अनुनाद

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कोरियाई कवि कू सेंग की कविताओं का सिलसिला / पांचवी किस्त

कवि के परिचय तथा अनुवादक के पूर्वकथन के लिए यहाँ क्लिक करें !
पंख

जीवन में पहली बार
जब मैंने लड़खड़ाते हुए चलना शुरू किया
तो पाया
कि मेरे हाथ-पैर मेरे क़ाबू में नहीं हैं
वे ऐसा कुछ नहीं कर पा रहे हैं
जैसा मैं
उनसे करवाना चाहता हूँ

और अब मैं
सत्तर के आसपास हूँ
और एक बार फिर
मेरे हाथ-पैर मेरे काबू में नहीं हैं
वे ऐसा कुछ नहीं कर पाएंगे
जैसा मैं
उनसे करवाना चाहता हूँ

कभी मैं लपकता था
लड़खड़ाता हुए भी
अपनी माँ के बढ़े हुए हाथों की तरफ़
और अब मैं जीता हूँ
साँस -दर-साँस
झुका हुआ सहारे के लिए
किन्हीं
अदृश्य हाथों की तरफ़

अब मुझे जो चीज़ चाहिए
वह कोई जेट हवाई जहाज या अंतरिक्ष यान नहीं
बस पंख उगा सकने के सुख की इच्छा है

छोटी-सी
उस इल्ली की तरह
जो आखिरकार बदल जाती है
एक तितली में
और चल देती है फरिश्तों के साथ
उड़ने और उड़ने
और बस उड़ते ही रहने को

मेरे इस बगीचे की-सी पूरी

आकाशगंगा में!


फूलों का बिस्तर
मैं खुश हूँ और कृतज्ञ भी

जो जहाँ भी है
वही उसके होने की सबसे अच्छी जगह है
हो सकता है कि आपको लगे आप काँटों के बिस्तर पर हैं
लेकिन देखिए
दरअसल यह तो फूलों का बिस्तर है –
आपके होने की सबसे अच्छी जगह!

मैं खुश हूँ और कृतज्ञ भी।
—- ——————-
अनुवादक की टीप : यह कविता उन शब्दों के बारे में है, जिनसे एक अन्य प्रसिद्द कोरियाई कवि कांग-चो ( ओ सैंग-सुन ) अपने मेहमानों का स्वागत करना पसंद करते थे। फूलों वाली जिस चटाई पर मेहमान को बिठाया जाता है, उस पर लिखा होता है सबसे अच्छी जगह।

नया साल

अब तक किसने देखा है एक नया साल
एक नयी सुबह
सिर्फ़ अपने दम पर ?

क्यों प्रदूषित कर रहे हैं आप
रहस्य के इस स्त्रोत को
बस एक कोयले-से काले कचरे में बदलते हुए ?

क्या किसी ने देखा है
एक चीथड़ा हो चुका दिन?
वक्त का एक तबाह हो चुका
लम्हा?

यदि आपने कुछ नया नहीं बनाया है
तो फिर आप स्वागत नहीं कर सकते एक नयी सुबह का
नए की तरह
आप स्वागत नहीं कर सकते एक नए दिन का
नए की तरह

यदि आपका दिल
जीवन में कभी एक बार भी खिल पाने में क़ामयाब रहा है
तो आप जी सकते हैं नए साल को
नए की तरह!

0 thoughts on “कोरियाई कवि कू सेंग की कविताओं का सिलसिला / पांचवी किस्त”

  1. कू सेंग की कवितायें जटिल यांत्रिकता की असंख्य वीथीयों में भटके आदमी को सरल, सहज रास्ते का विकल्प देती प्रतीत होती है. कविता ‘पंख’ बचपन और शेष होते जीवन के बीच बौद्धिकता से लदी जवानी के पूरे अन्तराल को खारिज करती है.शायद ये कवितायें हमारे समय के लिए अद्भुत उपलब्धि है.

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