अनुनाद

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कोरियाई कवि कू सेंग की कविताओं का सिलसिला / चौथी किस्त

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ऐसे या वैसे

किसी अपार्टमेंट में रहना
कंक्रीट के जंगल के बीचों-बीच बने मुर्गी के दड़बे में रहने जैसा होता है
लेकिन फिर भी वहाँ काफी धूप आती है
और निश्चित रूप से
इसकी तुलना दिओजेनेस के उस बड़े पीपे से नहीं की जा सकती
जिसमें वह जीवन भर रहा

पेड़ खड़े रहते हैं यहाँ-वहाँ
और चूंकि वे बदलते रहते हैं मौसम के साथ
इसलिए
क़ुदरत के करिश्मों का अहसास भी कराते हैं
गुलदाउदी और गुलाब के फूलों में बिंध जाती है मेरी आत्मा!

नदी किनारे
जहाँ जंगली पौधे उगते हैं
टहलते रहना और ताकते रहना नदी को
मेरा रोज का शगल है

और ऐसा करते-करते अब मैं खुद भी
तब्दील हो चुका हूँ
बहते हुए पानी की एक अकेली बूँद में

और इस तरह
मैं खुद को कुछ नहीं कह सकता
सिर्फ मुझसे मिलने वाले लोग
देख सकते हैं
बाहर छोड़ी हुई मेरी धीमी साँसों को
स्टेडियम में
किसी एथलीट की दौड़ की तरह
लेकिन
एक दिन यह भी बदल जाएगा

(दिक्कत तो यह है
कि जब मैं छोटा था मेरे घर के लोग बहुत
सीधे-सादे थे)

ऐसे या वैसे
मेरा जीवन अब अपनी समाप्ति के कगार पर है

यहाँ तक कि मौत भी
जिसकी कल्पना भर से मैं भयाकुल रहा करता था
अब सुखद दिखाई देने लगी है
बिल्कुल माँ के आगोश की तरह!
——

(अनुवादक की टीप : दिओजेनेस सिकन्दर के समय का एक यूनानी दार्शनिक था जो जीवन भर एथेंस से बाहर एक बड़े-अंधेरे गोलाकार पीपे में रहा। कहते हैं कि वह कभी दिन के उजाले या धूप में अपने पीपे से बाहर नहीं आता था और रात भर शहर के छोर पर लालटेन लिए अपने वक़्त के सबसे ईमानदार आदमी की खोज किया करता था। )


एक संस्मरण

टी0वी0 पर
एशियाई खेलों में तीन स्वर्णपदकों की विजेता
रिम चुआन-एंग का दमकता चेहरा देखते हुए
मुझे लगा कि उसके भाव
कुछ जाने-पहचाने हैं
अपनी यादों को देर तक उलटने-पलटने
खोजने-टटोलने के बाद
मुझे याद आयी
मुदग्लियानी की वह पेंटिंग “पोर्ट्रेट ऑफ़ ए वूमेन”
जो मेरे कमरे की दीवार पर
टंगी होती थी
जब मैं बीस साल का था और पढ़ता था
टोकियो में

मुझे वह पेंटिंग बहुत पसंद थी
और उस चिंताकुल थके हुए चेहरे को मैं प्यार करता था
यहाँ तक कि मैं अपने दोस्तों से कहता था –
मैं एक ऐसी औरत से शादी करूंगा जो इस पेंटिंग जैसी हो
आख़िर मैं नहीं पा सका ऐसी कोई भी औरत
और मैंने शादी कर ली
अपनी पत्नी से
जो कहीं अधिक सुखद थी मेरे लिए!

और अब जबकि बयालीस साल बीत चुके हैं
आख़िरकार
एक ऐसी ही लड़की प्रकट हुई है !

लोग कहते हैं
कि गोएथे सत्तर की उम्र में
एक षोडसी के प्रेम में पागल थे
और हेनरी मिलर भी जो अभी पिछले बरस ही गुज़रे
सत्तर की उम्र में ही
प्यार के पैग़ाम भेजने के लिए बदनाम थे!

लेकिन मैं?

मेरा तो अलग मामला है
हरेक दिन
जब आईना मुझे घूरता है
मेरे सलेटी दाढ़ी और बाल
हमेशा से अधिक सफ़ेद दिखाई देने लगते हैं!
——-

(गोएथे– विख्यात जर्मन लेखक/ हेनरी मिलर – विख्यात अमरीकी उपन्यासकार और चित्रकार)


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