अनुनाद

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जिसके बिना मनुष्‍य होने में सम्‍पूर्णता नही : पंकज चतुर्वेदी की दो कविताएँ

आज के सबसे सुखद समाचार की तरह पंकज जी की ये दो कविताएं मिलीं। बच्चे के लिए उन्होंने जो कुछ लिखा, वो दुनिया भर के पिताओं का सबसे गौरवशाली वक्तव्य हो सकता है। अनुनाद के पाठक पहले भी उनकी कविताएं इस ब्लाग पर पढ़ चुके हैं और एक लम्बा लेख भी। इन कविताओं के लिए धन्यवाद पंकज भाई !

मुसीबत में

अचानक आयी बीमारी
दुर्घटना

या ऐसे ही किसी हादसे में
हताहत हुए लोगों को देखने
उनसे मिलने
उनके घर जाओ
या अस्पताल

उन्हें खून दो
और पैसा अगर दे सको
नहीं तो ज़रूरत पड़ने पर क़र्ज़ ही
उनके इलाज में मदद करो
जितनी और जैसी भी
मुमकिन हो या माँगी जाय

तुम भी जब कभी
हालात से मजबूर होकर
दुखों से गुज़रोगे
तब तुम्हारा साथ देने
जो आगे आयेंगे
वे वही नहीं होंगे
जिनकी तीमारदारी में
तुम हाज़िर रहे थे

वे दूसरे ही लोग होंगे
मगर वे भी शायद
इसीलिए आयेंगे
कि उनके ही जैसे लोगों की
मुसीबत में मदद करने
तुम गये थे
***

पाँच महीने के अपने बच्चे से बातचीत के बहाने

जब भी तुम रोते हो
मैं जानता हूँ, मेरे बच्चे
तुम कुछ कहना चाहते हो
और उसे कह नहीं पा रहे

मसलन् अपनी नींद, भूख
किसी और इच्छा, ज़रूरत
या तकलीफ़ के बारे में कुछ

भले ही कुछ कवियों को लगता हो
कि बच्चे अकारण रोते हैं
और कुछ और कवि
ग़ालिब की कविता में आये दुख को
महज़ `होने´ का अवसाद
बताते हों
मगर ऐसी शुद्धता
मुमकिन नहीं है

दुख के कारण होते हैं
और उसके रिश्ते
हमारे समय
और ज़िन्दगी के हालात से
चाहे कोई उन्हें देख न पाये
और अगर देख पा रहा है
तो इस तरह के झूठ का प्रचार करना
किसी सामाजिक अपराध से कम नहीं है
मैं जानता हूँ, मेरे बच्चे
एक फ़्लैट के भीतर
जिसका अपना कोई बाग़ीचा नहीं
आकाश भी नहीं
तुम सो नहीं पाते

तुम्हें नींद आती है
खुले आसमान के नीचे
जहाँ ठंडी हवा चलती है
उन सघन वृक्षों की छाँह में
जो सड़क पर बचे रह गए हैं

उनसे पहले आते हैं
वे इक्का-दुक्का
ऊँचे और भव्य लैम्प-पोस्ट–
जो सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं
इसलिए शायद जले रह गए हैं–
उन्हें देखते हो तुम
अपार कौतूहल से
अपनी ही नज़र में डूबकर
मानो यह सोचते हुए–
यह रौशनी इतनी उदात्त
आखिर इसका स्रोत क्या है?

और वे चन्द्रमा और नक्षत्र–
खगोलविद् उनके बारे में
कुछ भी कहें–
मगर जो न जाने कितनी शताब्दियों से
दुनिया के सबसे सुखद
और समुज्ज्वल विस्मय हैं

उनके सौन्दर्य में जब तुम
निमज्जित हो जाते हो
मुझसे बहुत दूर
फिर भी कितने पास मेरे
तब मुझे लगता है, मेरे बच्चे–
यह भी एक ज़रूरी काम है
जिसके बिना
मनुष्य होने में
संपूर्णता नहीं

***
______________
पता – पंकज चतुर्वेदी, 203, उत्सव अपार्टमेण्ट( 379, लखनपुर( कानपुर (उ0प्र0) / मोबाईल -09335156082

0 thoughts on “जिसके बिना मनुष्‍य होने में सम्‍पूर्णता नही : पंकज चतुर्वेदी की दो कविताएँ”

  1. ये हुई न बात! कहां वो लम्बे वैचारिक लेखों का खुरदुरापन और इन कहां कविताओं की कोमल संवेदना!

  2. इतनी सादगी के साथ इतनी अच्छी कविताएं। पहली कविता पढ़कर ही काफी देर रुकना पड़ा, उसके लिए कि अभी इसका असर ही रहे देर तक।

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