
और अच्छा हुआ
कि गुजरात में नहीं
ग्वालियर में हुई आपकी मज़ार
वरना उजाड़ दी जाती सैकड़ों बरस बाद भी
आपको क़त्ल न कर पाने की
ऐतिहासिक असमर्थता में
हालाँकि
वहाँ तलक भी पहुँचेगे
उनके हाथ
एक दिन
उनका दिमाग़ आपको भी
पकड़ ही लेगा
पता नहीं क्यों मैं इतना ही सोच पाता हूँ
आपके बारे में
और आपके इस राग के बारे में
मुझे इसके अलावा भी कुछ और चीज़ों के बारे में
सोचना चाहिए
मसलन यह
कि सूखा तो अब हर साल आता है हमारे इलाक़े में
और बारिश का कुछ
ठीक नहीं
हम जिस चीज़ के बारे में सबसे ज्य़ादा बोलते हैं
सबसे कम जानते हैं उसके बारे में
हमें मौसम के बारे में बात करनी चाहिए
हमें बात करनी चाहिए ख़राब मौसम में
अच्छे
और अच्छे मौसम में ख़राब के बारे में
क्या किसी के सोचने से कुछ होता है ?
क्या किसी के बोलने से कुछ होता है ?
क्या किसी के गाने से कुछ होगा ?
इस जलती हुई धरती का दुख किसी की तो समझ में आयेगा
कोई तो इस बारे में गाएगा
किसी तरह तो हटाया जा सकेगा धूल और धुँए का
ये अन्तहीन गुबार
कभी तो बुलाए जा सकेंगे बादल बेखटके
गायी जा सकेगी
मियाँ की मल्हार।
पता नहीं क्यों मैं इतना ही सोच पाता हूँ
आपके बारे में
और आपके इस राग के बारे में
मुझे इसके अलावा भी कुछ और चीज़ों के बारे में
सोचना चाहिए
मसलन यह
कि सूखा तो अब हर साल आता है हमारे इलाक़े में
और बारिश का कुछ
ठीक नहीं
हम जिस चीज़ के बारे में सबसे ज्य़ादा बोलते हैं
सबसे कम जानते हैं उसके बारे में
हमें मौसम के बारे में बात करनी चाहिए
हमें बात करनी चाहिए ख़राब मौसम में
अच्छे
और अच्छे मौसम में ख़राब के बारे में
क्या किसी के सोचने से कुछ होता है ?
क्या किसी के बोलने से कुछ होता है ?
क्या किसी के गाने से कुछ होगा ?
इस जलती हुई धरती का दुख किसी की तो समझ में आयेगा
कोई तो इस बारे में गाएगा
किसी तरह तो हटाया जा सकेगा धूल और धुँए का
ये अन्तहीन गुबार
कभी तो बुलाए जा सकेंगे बादल बेखटके
गायी जा सकेगी
मियाँ की मल्हार।
आमीन!
( जीवन राग श्रृंखला से ......)
अच्छी कविता ! ये जीवनराग श्रृंखला क्या है? अगर और कविताएं हैं तो पूरी श्रृंखला साथ लगाइए!
ReplyDeleteis kavita mein ek bahut saarthak contrast ujaagar kiya gaya hai ki ham jis cheez ke baare mein sabse zyaada bolte hain, sabse kam jaante hain uske baare mein. qhaas tour par hindi ke vidwaan! ye kisi bhi vishay ke swa-niyukt visheshagya hain aur us par sampoorna adhikaar ke saath bolne lagte hain. idhar yah vidambana sabse zyaada film slumdog millionare ke sandarbh mein charitaarth hui, jab usse samvedit hue bina, use samjhe bina in logo ne tamaam oot-pataang baatein ki. vyomesh shukla ki ek kavita yaad aati hai ki in logon ke is tarah bolne se yathaarth kuchh-ka-kuchh ho jaata hai, jabki kabhi-kabhi chup bhi rahna chaahiye !
ReplyDelete----pankaj chaturvedi
kanpur
आह! अद्भुत कविता। मेरी सबसे प्रिय कविताओं में से एक। काश मैं इसकी व्याख्या कर पाता कि क्यूं। बस यही कि इस दौर में किसी भी संवेदनशील मनुष्य की चिंता, बेबसी और उम्मीद को बयान करती। हर लाइन दिल और दिमाग पर गहरा असर छोड़ती। कई बार बेहद उदास करती भी(अगर किसी को उदासी भी मूल्य लगती हो तो।)
ReplyDeletebehtareen baat..shirish ji
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