आज से 74 वर्ष पूर्व तेहरान में एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी फ़रोग इरानी स्त्रीवादी कविता की अगवा मानी जाती हैं। हालांकि वे महज 32 साल तक जीवित रहीं। औपचारिक तौर पर उन्होंने नौंवी क्लास तक शिक्षा पाई, फिर पेंटिग और सिलाई सीखी। 17 वर्ष की उम्र में उनका पहला काव्य संकलन प्रकाशित हुआ। 16 की उम्र में उन्होंने एक व्यंग्यकार रिश्तेदार से विवाह किया, प
र कुछ ही समय बाद एक बेटे का जन्म हुआ और तभी उनका तलाक हो गया। धार्मिक रुढ़िवादिता को धता बताते हुए बेचैन फ़रोग 1956 में यूरोप यात्रा पर निकल पड़ीं - इंग्लैंड में उन्होंने फिल्मकला का प्रशिक्षण लिया। बाद में वे अमरीका जाकर बस गईं, जहां रहस्यमय परिस्थियों में 1967 में एक कार एक्सीडेंट में उनकी दर्दनाक मौत हो गई। 1962 में उन्होंने `द हाउस इज ब्लैक´ नामक डाक्यूमेंट्री बनाई, जिसमें एक ईरानी कुष्ठाश्रम की मार्मिक दशा का वर्णन किया गया था- इसे जर्मनी के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कृत किया गया। फिल्म निर्माण के दौरान एक कुष्ठ रोगी दंपति के बच्चे को उन्होंने गोद लिया और जीवनपर्यन्त अपने साथ रखा। उनका दूसरा,तीसरा और चौथा काव्य संकलन जीवित रहते निकला पर पांचवां संकलन मृत्योपरांत प्रकाशित हुआ। 1963 में यूनेस्को ने उनके जीवन और कृतित्व पर एक लघु फिल्म बनाई। पुरुष वर्चस्व को चुनौती देती हुई उनकी कविताओं में निर्बाध प्रेम का अनहद नाद सुनाई देता है। लिहाजा अपनी भाषा में लिखते रहने के बावजूद ईरानी समाज में उनकी स्वीकृति सहज नहीं रही। पर जब भी ईरान में प्रगतिशील साहित्य की चर्चा होती है, फ़रोग का नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है। - यादवेन्द्र

कविताएं
तोहफ़ा
मैं मध्यरात्रि के गर्भ से बोल रही हूं
दरअसल बता रही हूं अंधकार की अतियों के बारे में
और असीमित छाया की सघनता के बारे में भी
मेरे प्रिय
जब तुम आओगे मुझसे मिलने मेरे घर
साथ में लेते आना रोशनी बिखेरता एक चिराग़
और खोल देना यहां एक खिड़की भी
जिससे देख सकूं मैं भर आंखों
पूरे शबाब पर खुशनसीबों के नाचते-गाते
जनसमूह !
तोहफ़ा
मैं मध्यरात्रि के गर्भ से बोल रही हूं
दरअसल बता रही हूं अंधकार की अतियों के बारे में
और असीमित छाया की सघनता के बारे में भी
मेरे प्रिय
जब तुम आओगे मुझसे मिलने मेरे घर
साथ में लेते आना रोशनी बिखेरता एक चिराग़
और खोल देना यहां एक खिड़की भी
जिससे देख सकूं मैं भर आंखों
पूरे शबाब पर खुशनसीबों के नाचते-गाते
जनसमूह !
चिड़िया थी तो आखिर चिड़िया ही
चिड़िया बोली :
कितना है चटकीला दिन
कितनी ताज़ा यह हवा
अहा, वसन्त आ गया है
मैं निकलती हूं अब
अपने जोड़ीदार की तलाश में
चिड़िया उड़ी तारों की बाड़ के पार
छूने लगी बादल
और ओझल हो गई ऊंचाईयों में -
किसी चाहत की तरह
किसी प्रार्थना की तरह
किसी सरसराहट की तरह
और देखते-देखते बिखर गई चारों ओर चिड़िया हवा में
नन्हीं-सी चिड़िया
पिद्दी-सी चिड़िया
धूसर-सी चिड़िया
एकाकी थी चिड़िया पर थी सचमुच में एकदम आज़ाद
आकाश में ऊपर-नीचे
ट्रैफिक लाइटों के पार
सड़क पर बने निशानों के पार
उड़ती ही रही
अनवरत
अविराम
वह चिड़िया
और अंत में अपने ख्वाबों के शिखर पर पहुंच
उसने चखा काल और स्थान का आनन्द
चिड़िया थी तो आखिर चिड़िया ही
पर थी सचमुच में
एकदम आज़ाद !
गुलाब
गुलाब
गुलाब
ओ गुलाब !
वह मुझे साथ लेकर गया था
गुलाबों के बाग़ में
गुलाबों के बाग़ में
और खोंस दिया
मेरे आतुर बालों के बीच
एक गुलाब
गुलाबों के बाग़ में
एक झाड़ी की ओट लेकर
वह लेटा था
मेरे साथ
गुलाबों के बाग़ में
वृक्षों और पंछियों से थोड़ा परे हटकर
इसके बाद वह सोया था
मेरे साथ
सुनो न !
आंखों पर पट्टी बांधे हुई खिड़कियों
इस बाबत मैं तुमसे ही तो बोल रही हूं
सुनो न !
ईष्यालु वृक्षों, डरी हुई बतखों
इस बाबत मैं तुमसे ही तो बोल रही हूं
ग़़ौर से सुनना मेरी बात :
जोर-जोर से धड़कते मेरे दिल के नीचे
मेरे अंतर की अतल गहराई में
ऐसा लग रहा है
खिल रहा हो जैसे कोई गुलाब
लाल गुलाब
एक चटकीला लाल गुलाब
जैसे हो फहराता कोई ईश्वरीय ध्वज
फिर से जीवित हो जाने के दिन !
सुनो मेरी बात :
मुझे लगता है
जैसे बह रहा हो कोई गुलाब
मेरी उत्तेजित शिराओं के अंदर ही अंदर
मैं हो गई हूं गर्भवती
गर्भवती?
हां, गर्भवती !
_________________________________________________________
यादवेंद्र
एफ-24, शांतिनगर,
रुड़की - 247 667
फोन : 9411111689
वाकई अद्भुत। चटकीली लाल गुलाब सी, चिड़िया की उड़ान सी और चराग की रोशनी सी। आजादी की चाहत और प्रेम की तड़प सी.
ReplyDeleteफ़रोग की सभी कविताएं अद्भुत लगीं। आपने सही लिखा है, उनकी कविताओं में निर्बाध प्रेम का एक अनहद नाद सुनाई देता है। ख़ूबसूरत अनुवाद के लिए बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मार्मिक भी।
ReplyDeleteफ़रोग की एक और कविता के लिए यह पोस्ट देखें.
ReplyDeletehttp://bbtiwari.blogspot.com/2009/03/blog-post_22.html
यादवेंद्र जी द्वारा हिंदी में अनूदित फ़रोग फ़रोखज़ाद की चार कविताएं "सेतु साहित्य" के अप्रैल 2009 अंक में भी पढ़ सकते हैं। लिंक हैं- www.setusahitya.blogspot.com
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