अनुनाद

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उर्दू हिन्दू और अन्य कविताएँ : नरेश चन्‍द्रकर



“जिन कवियों की बदौलत आज की हिंदी कविता का संसार नया और बदला-बदला लग रहा है, उनमें नरेश चंद्रकर अग्रणी हैं” – वरिष्ठ कवि अरुण कमल की यह टिप्पणी नरेश जी के परिचय के लिए काफी होगी। वे हमारे समय के महत्वपूर्ण कवियों में हैं और उनका सीधा-सादापन अनमोल। यह सभी कविताएं अनुनाद के प्रवेशांक से ……

उर्दू हिंदू

उन्होंने कहा – तुम्हारी भाषा में उर्दू बहुत है
नाम क्या है?
हिंदू नहीं हो क्या?
मुझे लगा
इस भाषाई नंगई का जन्म
ज़रूर किसी
हिंदू प्रयोगशाला में हुआ होगा !


स्त्रियों की लिखी पंक्तियां

एक स्त्री की छींक सुनाई दी थी कल मुझे अपने भीतर
वह जुकाम से पीड़ित थी
नहाकर आयी थी
आलू बघारे थे
कुछ ज्ञात नहीं
पर काम से निपटकर कुछ पंक्तियां लिखकर वह सोई
स्त्रियों के कंठ में रूंधी असंख्य पंक्तियां हैं अभी भी
जो या तो नष्ट हो रही हैं
या लिखी जा रही हैं सिर्फ़ कागज़ों पर
कबाड़ हो जाने के लिए

कभी पढ़ी जायेंगी ये मलिन पंक्तियां तो सुसाइड नोट लगेंगी


हमारे समय में कृतज्ञता

मैंने उनके कई काम निपटाए
न निपटाता तो हमेशा के लिए नाराज़ रहते
अब वे कहते हैं
बुरा फंसा तुम्हारे निपटाए काम की वजह से!


क्रम

पहले हत्या की
फिर खून के दाग़ मिटाए
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बदली
गवाह बदले
अदालती कार्रवाई की जगहें बदलीं
हत्या की तरक़ीब
और उनकी अटकलें बदलीं
हत्यारे का हुलिया बदला
हत्या के वाहन बदले
साथ-साथ उसने हाथ धोए
वह नहाया
उसने साफ़ कपड़े पहने
मुस्कुराता चेहरा लिए हवाई अड्डे पहुंचा
ऐसे विदा हुआ वह देश से
ऐसे शुरू हुआ नया व्यापार !


अन्न हरकारे हैं
इस बार गेंहू फटकारते वक़्त
कुछ अजीब आवाज़ें उठीं
धान के सूखे कण चुनना
खून के सूखे थक्के बीनने जैसा था
आटे चक्की में सुनाई दी रगड़ती हुई सूनी सांसें
ठीक नहीं थे इस बार गेंहू बाज़ार में
मन उचाट रहा उनके मलिन स्वर सुनकर
वह किसान आत्महत्याओं का प्रभाव था
हाथ से छूट जाते थे अन्नकण
उदास बना हुआ था उनका गेंहुआ रंग
अन्न हरकारे हैं
ख़बर पहुंचाते हैं हम तक
अपने अंदाज़ में !


मेज़बानों की सभा

आदिवासीजन पर सभा हुई
इंतज़ाम उन्हीं का था
उन्हीं के इलाक़े में
शामिल वे भी थे उस भद्रजन सभा में
लिख-लिखकर लाए पर्चे पढ़े जाते रहे
खूब थूक उड़ा
सहसा देखा मैंने
मेज़बानों की आंखों में भी चल रही है सभा
जो मेहमानों की सभा से बिलकुल
भिन्न और मलिन है !


0 thoughts on “उर्दू हिन्दू और अन्य कविताएँ : नरेश चन्‍द्रकर”

  1. अनुनाद के प्रवेशांक से नरेश चंद्रकर जी की इन कविताओं में कई तेवर दिखे पर अंदाज़ वही, जो आप कहते है, सादा.
    अन्न हरकारे है कविता ख़ास पसंद आई.

  2. शिरीष जी, आप ‘मेरी पसंद’ नाम से कविता संग्रह छपवायें,इन सभी कवियों की इजाजत लेकर. एक बहुत बढ़िया संकलन होगा.

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