वरवर राव विख्यात तेलगू कवि हैं। उनका संकलन हिंदी में भी उपलब्ध है। वसन्त के क्रम को आगे बढ़ाती हुई उनकी यह कविता पहल-47 से साभार!

वसन्त कभी अकेले नहीं आता
गर्मियों के साथ मिलकर आता है
झड़े हुए फूलों की याद के करीब
नई कोंपलें फूटती हैं
वर्तमान पत्तों के पीछे अदृश्य भविष्य जैसी कोयल विगत विषाद की
मधुरता सुनाती है
निरीक्षित क्षणों में उगते हुए
सपनों की अवधि घटती है
सारा दिन तवे-से तपे आकाश में
चंद्रमा मक्खन की तरह शायद पिघल गया होगा
मुझे क्या मालूम
चांदनी कभी अकेले नहीं आती
रात को साथ लाती है
सपने कभी अकेले नहीं आते
गहरी नींद को साथ लाते हैं
गिरे हुए सूर्य बिंब जैसे स्वप्न से छूटकर भी
नींद नहीं टूटती
सुख कभी अकेले नहीं आता
पंखों के भीतर भीगा भार भी
कसमसाता है !
अनुवाद - एम0टी0 खान और आदेश यादव
Nice Poem Sir
ReplyDeleteU R Welcome at my blog
bahut hi aachi rahna hai..........
ReplyDeleteवाह ! आशा से भरी सुंदर अभिव्यक्ति...सुंदर रचना हेतु बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द प्रयोग
ReplyDelete----------
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हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख
शुक्रिया इन बेहतरीन लफ्जों को यहाँ बिखेरने के लिए
ReplyDeletebahut acchi rachana
ReplyDeleteइतनी अच्छी रचना पढवाने के लिए शुक्रिया।
ReplyDeletebahut hi sundar kavita..jitnee tareef ki jaye kam hai..tave se tapte aakash me ..kya baat hai.
ReplyDeleteलहू से सींचनी पड़ती है धरती तभी आता है सपनो का बसंत
ReplyDeleteAACHEE KAVI KE ACHEE KAVITA.................
ReplyDeleteकितनी सही बात है....!
ReplyDeletewah! ye kavita to khoob bhali lagi. Vasant kabhi akele nahi aata...bahut sundar!
ReplyDeletesukhad ehasaason ki kavita padhaayi aapane .. kavi ko badhaayi
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