(.....अभी मैंने तुषार के कविता संकलन से सम्बंधित पोस्ट लगाई थी। आज मेल में गीत, अनुराग, गिरिराज, व्योमेश आदि दोस्तों को सम्मिलित रूप से भेजी गई ये दो कविताएँ मिलीं। मुझे अच्छी लगीं, सो इन्हें जस का तस यहाँ लगा रहा हूँ ..... हालाँकि तुषार ने इन्हें पढ़ने भर को भेजा है .... पर मैं साधिकार लगा दे रहा हूँ ! )
तुम्हें मुक्त करते हुए
वह जो कुछ अब बीत जायेगा
किसी एल्बम में देखोगे तुम
वही परछाइयाँ
जिरह करेंगी तुम्हारे सन्नाटों से
एक दिन सदी बीत जायेगी
एक दिन नदी बीत जायेगी
सूखे किनारे पर बेमानी हो जायेगा पुल
एक प्यास फैली होगी यहाँ से वहां तक
मोह के बाहुपाश में कई कथाएँ होंगी
ये जो कई विचार मन पर दौड़ते हैं
एक दिन नहीं होंगे, जानता हूँ
जानता हूँ कि अब मुक्त होना है तुम्हें जबकि तुम मुक्त थे हमेशा ही
एक विचार था जो तुम्हें रोके हुए था अभी तक
ओ मेरे ओक्टोपस साथी
तुम्हें मुक्त करता हूँ
यहीं अभी और लौटता हूँ अपनी गुफा में
खुद मुक्त होता हुआ
इन अँधेरों में कोई अक्षर मेरे इंतज़ार में कब से बैठा है.
---
दुःख
दुःख सूने कैनवास सा
दुःख समुद्र के सिराहने खड़े टूटे चाँद सा
दुःख बालकनी में टंगे अकेले तौलिये सा
एक नमी से सीला संसार
रुकी हुई उबकाई लिए आ घेरता है
शीशे शीशे टुकड़े टुकड़े किरमिच कंकड़ पलकों में
समय का पीला धुआं
किसी छोड़ी गई बीड़ी की राख से उगता हुआ
बताता है कि तुम हो
कि यह जो सुख की केंचुल छूट गयी है
इसे मन ने उतारा था
सिरजते हुए विचार
दुःख सूखी लकड़ी सा
दुख सूने बथान सा
दुःख फाइल पर जमी धूल सा
जहाँ तहां गड़ता है झड़ता है
एक भीगा धुआं भीतर ही भीतर फ़ैल जाता है शरीर में
और तुम्हारे कई चित्र उभरते हैं जाने कौन कौन सी आँख में
दुःख लकड़बग्घे सा
दुःख उल्टे बर्तन सा
दुःख रात की हवा सा
दबे पाँव आता है जैसे आया हो कोई लोहार
खड़कने लगते हैं अचानक अनगढे औजार
कोई सपेरा बीन बजा कर गायब हो जाता है
कोई लकीर सांप निकाल लेती है
कोई फ़कीर मेरे भीतर जो रहता है टोकता है डूबती सांस को
मनजात है
मनजात है दुःख
दुःख मनजात है.
---
(२६।०२।२००९)
मुंबई