अनुनाद

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हथिया नक्षत्र तथा अन्य कविताएँ – सिद्धेश्वर सिंह

सिद्धेश्वर सिंह कविता के एक खामोश और संकोची किंतु अत्यन्त समर्थ कार्यकर्ता हैं। अपनी कविताओं के जिक्र को वे हमेशा टालते आए हैं इसलिए इस

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ये जो नई फसल है..! – युवा कविता पर अरुण आदित्य की टिप्पणी और तीन कविताएं

अरुण आदित्य 1965 में प्रतापगढ़ में जन्म हुआ़। कविता-संग्रह ‘रोज ही होता था यह सब’ 1995 में प्रकाशित। इसी संग्रह के लिए मध्यप्रदेश साहित्य परिषद

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लाल्टू की कविताएँ

लाल्टू को मैं उनके पहले संग्रह `एक झील थी बर्फ़ की´ से जानता हूं। मुझे वे कविताएं अच्छी लगीं और इधर नेट पर उनका दूसरा

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फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : शानी / 4

फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये चौथी और अन्तिम किस्त ……… इन सारी कविताओं/गीतों के अनुवादक प्रसिद्ध कथाकार दिवंगत गुलशेर

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फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 3

फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये तीसरी किस्त ……… नारंगी के सूखे पेड़ का गीत लकड़हारेमेरी छाया काटमुझे खुद को

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फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 2

फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताओं / गीतों के अनुवाद की ये दूसरी किस्त ………चांद उगता है जब चांद उगता हैघंटियां मंद पड़कर ग़ायब हो जाती

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फेदेरिको गार्सिया लोर्का की कविताएं : अनुवाद : विष्णु खरे / 1

ये सभी अनुवाद आलोचना के अंक जनवरी-मार्च 1987 से साभार। इन पन्द्रह कविताओं को श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुत करने का इरादा है और यह उम्मीद भी कि

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