Thursday, December 25, 2008

सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी तेलुगू कवि,संस्कृतिकर्मी और मानवाधिकारवादी वीर राघवाचारी को श्रद्धांजलि

मैनेजर पांडेय(राष्ट्रीय अध्यक्ष) एवं प्रणय कृष्ण(महासचिव) जन संस्कृति मंच की ओर से ज्ञापित शोक प्रस्ताव

सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी तेलुगू कवि,संस्कृतिकर्मी और मानवाधिकारवादी श्री ज्वालामुखी (वीर राघवाचारी) का गत 15 दिसंबर को 71वर्ष की आयु में हैदराबाद में देहान्त हो गया। श्री ज्वालामुखी आंध्रप्रदेश के क्रांतिकारी किसान आंदोलन का हिस्सा थे। श्रीकाकुलम,गोदावरी घाटी और तेलंगाना में सामंतवाद-विरोधी क्रांतिकारी वामपंथी किसान संघर्षों ने तेलुगू साहित्य में एक नई धारा का प्रवर्तन किया,ज्वालामुखी जिसके प्रमुख स्तंभों में से एक थे। 70 और 80 के दशक में जब इस आंदोलन पर भीषण दमन हो रहा था, उस समय सांस्कृतिक प्रतिरोध के नेतृत्वकर्ताओं में ज्वालामुखी अग्रणी थे। चेराबण्ड राजू,निखिलेश्वर, ज्वालामुखी आदि ने क्रांतिकारी कवि सुब्बाराव पाणिग्रही की शहादत से प्रेरणा लेते हुए युवा रचनाकारों का एक दल गठित किया। इस दल के कवि तेलुगू साहित्य में (1966-69 के बीच) दिगंबर कवियों के नाम से मशहूर हुए। नक्सलबाड़ी आंदोलन दलित और आदिवासियों के संघर्षशील जीवन से प्रभावित तेलुगू साहित्य-संस्कृति की इस नई धारा ने कविता, नाटक, सिनेमा सभी क्षेत्रों पर व्यापक असर डाला। ज्वालामुखी इस धारा के सशक्त प्रतिनिधि और सिद्धांतकार थे। वे जीवन पर्यन्त नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन से उपजी देशव्यापी सांस्कृतिक ऊर्जा को सहेजने में लगे रहे। वे इस सांस्कृतिक धारा के तमाम प्रदेशों में जो भी संगठन,व्यक्ति और आंदोलन थे उन्हें जोड़ने वाली कड़ी का काम करते रहे। हिंदी क्षेत्र में जन संस्कृति मंच के साथ उनका गहरा जुड़ाव रहा और उसके कई राष्ट्रीय सम्मेलनों को उन्होंने संबोधित किया। उनका महाकवि श्री श्री और क्रांतिकारी लेखक संगठन से भी गहरा जुड़ाव रहा। ज्वालामुखी लंबे समय से जन संस्कृति मंच की राष्ट्रीय परिषद के मानद आमंत्रित सदस्य रहे। हिंदी भाषा और साहित्य से उनका लगाव अगाध था। उनके द्वारा लिखी हिंदी साहित्यकार रांगेय राघव की जीवनी पर उन्हें साहित्य अकादमी का सम्मान भी प्राप्त हुआ था। ज्वालामुखी अपनी हजारों क्रांतिकारी कविताओं के लिए तो याद किए ही जाएंगे, साथ ही अपनी कथाकृतियों के लिए भी जिनमें `वेलादिन मन्द्रम्´, `हैदराबाद कथालु´,`वोतमी-तिरगुबतु´अत्यंत लोकप्रिय हैं। वे लोकतांत्रिक अधिकार संरक्षण संगठन के नेतृत्वकर्ताओं में से थे तथा हिंद-चीन मैत्री संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी थे। उनकी मृत्यु क्रांतिकारी वामपंथी सांस्कृतिक धारा की अपूर्णीय क्षति है।

जन संस्कृति मंच इस अपराजेय सांस्कृतिक योद्धा को अपना क्रांतिकारी सलाम पेश करता है।

(आम तौर पर अनुनाद एक पूरे दिन से पहले अपनी पोस्ट नहीं बदलता पर इस शोक प्रस्ताव की खातिर ये नियम अपवाद स्वरुप तोडा गया है ! इस सामग्री को विजय के ब्लॉग से लिया गया है और मुझे नहीं लगता उन्हें इस मित्र से किसी औपचारिक आभार की ज़रूरत होगी ! दिवंगत कवि को अनुनाद की भी श्रद्धांजलि। )

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