इस पोस्ट को रणधीर सिंह के व्याख्यान वाली मेरी पिछली पोस्ट से जोड़ कर पढ़ा जाएगा, ऐसी अपेक्षा करता हूँ !

एक
टूटते नहीं है सितारे
वे मिट जाते हैं आहिस्ता-आहिस्ता
जबकि उनके छूंछे प्रकाश में
हम गढ़ते होते हैं
अपने सर्वोत्तम स्वप्न
कई लाख वर्ष पहले ही मर चुका था वह नक्षत्र
जिसकी चमक देखकर लगाते आए थे हम
सुबह होने का अनुमान
दो
वे मिट जाते हैं आहिस्ता-आहिस्ता
जबकि उनके छूंछे प्रकाश में
हम गढ़ते होते हैं
अपने सर्वोत्तम स्वप्न
कई लाख वर्ष पहले ही मर चुका था वह नक्षत्र
जिसकी चमक देखकर लगाते आए थे हम
सुबह होने का अनुमान
दो
महान गणितज्ञों की तरह
वे सिर्फ इंगित करते हैं
दिशाओं को
राह नहीं खोजी जा सकती
उनके दिप-दिप प्रकाश में
उस रोशनी में तो नहीं देखा जा सकता
आइने तक में अपना चेहरा
सबसे भले लगते हैं वे
जब हवा और ओस में आभासित होती है
उनकी पत्ते की तरह कांपती हुई आत्मा-
एक किरण मात्र !
भोर, जो विश्व का सर्वाधिक दिव्य प्रकाश है
उसमें अगर सिर्फ हाशिये पर है सितारों की जगह
तो यों ही नहीं
तीन
वे सिर्फ इंगित करते हैं
दिशाओं को
राह नहीं खोजी जा सकती
उनके दिप-दिप प्रकाश में
उस रोशनी में तो नहीं देखा जा सकता
आइने तक में अपना चेहरा
सबसे भले लगते हैं वे
जब हवा और ओस में आभासित होती है
उनकी पत्ते की तरह कांपती हुई आत्मा-
एक किरण मात्र !
भोर, जो विश्व का सर्वाधिक दिव्य प्रकाश है
उसमें अगर सिर्फ हाशिये पर है सितारों की जगह
तो यों ही नहीं
तीन
छांह रात्रि की थी, तारों की नहीं
मगर भरमाता रहा हमें प्यार
वे तो बस मढ़ते थे रात को अपनी चमक से
जैसे अंधकार की सुंदर व्याख्या करते
रिझाने वाले चतुर शब्द
चार
मगर भरमाता रहा हमें प्यार
वे तो बस मढ़ते थे रात को अपनी चमक से
जैसे अंधकार की सुंदर व्याख्या करते
रिझाने वाले चतुर शब्द
चार
सब कुछ करते हैं सितारे
मैं पैदा हुआ क्योंकि कुछ सितारे ऐसा चाहते थे
मैं मर जाऊंगा
क्योंकि कुछ सितारे ऐसी योजना बना रहे हैं
तब मंगल आया था धरती के कुछ करीब
जब मैंने प्रेम किया
शनि वक्र हुआ
तो मेरा हाथ टूटा
और दिल
मैंने धक्के खाए
रोज़गार पाने के लिए भी ज़रूरी बताया गया
बृहस्पति का ठीक-ठिकाने होना
इस उलझे हुए आसमानी जाल के बाहर
कुछ भी करने की इजाज़त नहीं थी मुझे
पर मैं रहा पुराना
वही, कुटिल खल कामी
कुतरता हुआ
फरिश्तों के बुने हुए उस जाल को
चूहों की-सी अदम्य तल्लीनता से
बढ़ाता हुआ आगे तक
चीन की महान दीवार
जिसे ताकते हैं वे अपने अंतरिक्ष से भी
एक विद्वेष भरी टकटकी में !
***
मैं पैदा हुआ क्योंकि कुछ सितारे ऐसा चाहते थे
मैं मर जाऊंगा
क्योंकि कुछ सितारे ऐसी योजना बना रहे हैं
तब मंगल आया था धरती के कुछ करीब
जब मैंने प्रेम किया
शनि वक्र हुआ
तो मेरा हाथ टूटा
और दिल
मैंने धक्के खाए
रोज़गार पाने के लिए भी ज़रूरी बताया गया
बृहस्पति का ठीक-ठिकाने होना
इस उलझे हुए आसमानी जाल के बाहर
कुछ भी करने की इजाज़त नहीं थी मुझे
पर मैं रहा पुराना
वही, कुटिल खल कामी
कुतरता हुआ
फरिश्तों के बुने हुए उस जाल को
चूहों की-सी अदम्य तल्लीनता से
बढ़ाता हुआ आगे तक
चीन की महान दीवार
जिसे ताकते हैं वे अपने अंतरिक्ष से भी
एक विद्वेष भरी टकटकी में !
***
beete dino janmat me cycle par ek adbhut kavita ke bad yah veeren da ki kavitayee ka naya rang hai. pallav
ReplyDeleteकविताओं और व्याख्यान के रूप में उच्च कोटि का साहित्य पढ़ने को उपलब्ध करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteveeren jee itane varshon se apni laybadhta ko nikharne tarashne ke liye shukriya aap jaise log hi abhi bhi kavita ko bachaye hue hai...nisandeh padh ke bahut khushi hui ...sahi artho me ye shreshth hai....
ReplyDeleteye kavita shayad Vartman sahity ke kavita visheshank mein chhapi thi
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