अनुनाद

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एक अदृश्य सत्ता : जान पिल्गर : अनुवाद – अनिल

(हमारे समय में चेतना की धार को कुंद करने वाले शब्दों को उसके सही और वास्तविक मायनों में व्याख्यायित करने वाले प्रख्यात पत्रकार जान पिल्गर ने यह व्याख्यान शिकागो में पिछली जुलाई में दिया था. इस व्याख्यान में जान पिल्गर विस्तार से बताते हैं कि कैसे प्रोपोगेण्डा हमारे जीवन की दिशा को प्रबलता से प्रभावित कर रहा है. इतना ही नहीं प्रोपोगेण्डा आज एक अदृश्य सत्ता का भी प्रतिनिधित्व करता है. हिंदी में प्रोपोगेंडा शब्द के भाव को व्यक्त कर सकने वाला कोई एक निश्चित शब्द मेरी जानकारी में नहीं है. प्रोपोगेंडा शब्द से तात्पर्य है सच्चाई को दबाने के लिए जोर शोर से (कु)प्रचार अभियान – अनुवादक)

इस बातचीत का शीर्षक है अगली बार आजादी, जो मेरी पुस्तक का भी शीर्षक है और यह पुस्तक पत्रकारिता का छद्मवेश धारण कर किए जाने दुष्प्रचार अभियान अर्थात प्रोपोगेंडा की असलियत तथा इससे रोकथाम के बारे में है. अत: मैने सोचा कि आज मुझे पत्रकारिता के बारे में, पत्रकारिता द्वारा युद्ध के बारे में प्रोपोगेंडा और चुप्पी तथा इस चुप्पी को तोड़ने के बारे में बात करनी चाहिए. जनसंपर्क के तथाकथित जनक एडवर्ड बर्न्स ने एक अदृश्य सरकार के बारे में लिखा है जो हमारे देश में शासन करने वाली वास्तविक सत्ता होती है, वह पत्रकारिता, मीडिया को संबोधित कर रहे थे. यह करीब अस्सी साल पहले की बात है जबकि कार्पोरेट पत्रकारिता की खोज हुए ज्यादा लंबा समय नहीं हुआ था. यह एक इतिहास है जिसके बारे में कुछ पत्रकार बताते हैं या जानते हैं और इसकी शुरुआत कार्पोरेट विज्ञापन के उद्भव से हुई. जब कुछ निगमों ने प्रेस का अधिग्रहण करना शुरु कर दिया तो जिसे कुछ लोग `पेशेवर पत्रकारिता´ कहते हैं, की खोज हुई. बडे़ विज्ञापनदाताओं को आकिर्षत करने के लिए नए कारपोरेट प्रेस को सर्वमान्य, स्थापित सत्ताओं का स्तंभ- वस्तुनिष्ठ, निष्पक्ष तथा संतुलित दिखना था. पत्रकारिता का पहला स्कूल खोला गया और पेशेवर पत्रकारों के बीच उदारवादी निरपेक्षता के मिथकशास्त्रों की घुट्टी पिलाई जाने लगीं. अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को नई मीडिया तथा बडे़ निगमों के साथ जोड़ दिया गया और यह सब, जैसा कि राबर्ट मैक्चेसनी ने कहा है कि यह सब “पूरी तरह से बकवास´´ है.

जनता जो चीज नहीं जानती थी वह यह कि पेशेवर होने के लिए पत्रकारों को यह आश्वासन देना होता है कि जो समाचार और दृश्टिकोण वे देंगें आधिकारिक स्रोतों से ही संचालित और निर्देशित होंगे और यह आज भी नहीं बदला है. आप किसी भी दिन का न्यूयार्क टाइम्स उठाइए और राजनीतिक खबरों- विदेशी और घरेलू दोनों, के स्रोतों की पडताल करिए, आप पाएंगें कि वे सरकारों तथा अन्य स्थापित स्रोतों से ही निर्देशित हैं.पेशेवर पत्रकारिता का यही मूलभूत सार है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि स्वतंत्र पत्रकारिता इससे कोई अलग थी या इसे छोड दिया जाए लेकिन फिर भी यह इससे बेहतर अपवाद थी. इराक पर आक्रमण में न्यूयार्क टाईम्स की जुडिथ मिलर ने जो भूमिका निभाई है उसके बारे में सोचिए. उसके काम का पर्दाफाश हो गया लेकिन यह सिर्फ झूठ आधारित आक्रमण को प्रोत्साहित करने में शक्तिशाली भूमिका निभाने के बाद ही हो सका. फिर भी मिलर द्वारा आधिकारिक स्रोतों तथा निहित क्षुद्र स्वार्थो का रट्टा लगाना न्यूयार्क टाइम्स के कई अन्य प्रसिद्ध रिपोर्टरों, जैसे रिपोर्टर डब्ल्यू एच लारेंस जिसने अगस्त 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए अणुबमों के वास्तविक प्रभावों को कवर करने में मदद किया था, से कोई अलग नहीं था. `हिरोशिमा की बर्बादी में रेडियोएिक्टविटी नहीं´ इस रिपोर्ट का शीर्षक था और यह झूठ थी.

गौर कीजिए कि कैसे इस अदृश्य सरकार की शक्ति बढती गई. सन 1983 में प्रमुख वैश्विक मीडिया के मालिक/धारक पचास निगमें थीं जिसमें से अधिकतर अमरीकी थे. सन 2000 में गिरकर सिर्फ नौ निगम रह गए. आज तकरीबन पाच ही हैं.रूपर्ट मुडरोक का अनुमान है कि मात्र तीन मीडिया घुड़सवार ही रहेंगे और उसकी कंपनी उनमें से एक होगी. सत्ता का यह केंद्रीकरण संयुक्त राज्य में शायद उसी तरह नहीं है. बीबीसी ने घोषणा किया है कि वह अपने प्रसारण को संयुक्त राज्य में फैला रहा है क्योंकि उसका मानना है कि अमरीकन मौलिक, वस्तुनिष्ठ तथा निरपेक्ष पत्रकारिता चाहते हैं जिसके लिए बीबीसी प्रसिद्ध है. उन्होंने बीबीसी अमरीका प्रारंभ किया है. आपने विज्ञापन देखा ही होगा.

बीबीसी 1922 में, अमरीका में कार्पोरेट प्रेस के शुरु होने के थोडा पहले, शुरू हुआ. इसके संस्थापक जान रीथ थे जिनका मानना था कि निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता पेशेवर होने के मूलभूत सार हैं. उसी साल ब्रिटिश हुकूमत को घेर लिया गया था. श्रमिक संगठनों ने आम हड़ताल का आह्वान किया था तथा टोरियों को डर हो गया कि क्रान्ति होने जा रही है.तब नवीन बीबीसी उनके बचाव में आया. उच्च गोपनीयता में लार्ड रीथ ने टोरी प्रधानमंत्री स्टानले बाल्डविन के लिए यूनियन विरोधी भाषण लिखा और जब तक हड़ताल खत्म नहीं हो गई लेबर नेताओं को अपना पक्ष रखने की अनुमति देने से इंकार करते हुए उन भाषणों को राष्ट्र के नाम प्रसारित करते रहे.

अत: एक उदाहरण/प्रतिरूप स्थापित किया गया. निष्पक्षता एक निश्चित सिद्धांत था( एक ऐसा सिद्धांत जिसे स्थापित सत्ता को खतरा महसूस होते ही बर्खास्त कर दिया गया. और यह सिद्धांत तब से संभाल कर रखा गया है.

बीबीसी समाचार में सामान्यत: दो शब्द भूल (मिस्टेक) और मूर्खतापूर्ण गलती (ब्लंडर) प्रमुखता से इस्तेमाल किए जाते हैं. वह भी “असफल´´ के साथ जो कम से कम यह दिखाता है कि अगर सुरक्षाविहीन इराक पर जानबूझकर, सुनियोजित, बिना भड़काए, गैरकानूनी आक्रमण सफल हो जाता तो वह बिल्कुल सही होता. जब भी मैं इन शब्दों को सुनता हूं तो न सोचे जा सकने वाले को भी सामान्य करने के बारे में एडवर्ड हरमन के अद्भुत लेख की याद आ जाती है. जिसके लिए मीडिया घिसी पिटी उक्तियों का प्रयोग करता है तथा सोची तक न जा सकने वाली बात को सामान्य बनाने का काम करता है. युद्ध के विनाश को, विशाल आबादी की यातनाओं को, आक्रमण से क्षत विक्षत बच्चों को, उन सब को जिसे मैने देखा है.

शीत युद्ध के दौरान रूसी पत्रकारों के अमरीका भ्रमण पर मेरी एक पसंदीदा रिपोर्ट है. भ्रमण के अंतिम दिनों में उनके मेजबान ने अपनी शेखी बघारने के लिए उनसे कुछ पूछा था. `मैं आपको बताता हूं, प्रवक्ता ने कहा, “कि सभी अखबारों को पढ़कर तथा रोज ब रोज टेलीविजन देखते हुए हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सभी बडे मुद्दों पर लगभग सभी राय एक जैसी हैं. अपने देश में इन समाचारों को पाने के लिए हम गुलागों में पत्रकार भेजते हैं, हम उनकी उंगलियों के नाखून तक जांचते हैं. यहां आपको वो कुछ नहीं करना पडेगा. इसका भेद क्या है?

गोपनीय क्या है? यह सवाल अक्सर ही समाचार कक्षों, मीडिया अध्ययन के संस्थानों, पत्र पत्रिकाओं में पूछा जाता है. और इस सवाल का जबाव लाखों लोगों की जिंदगी के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है. पिछले साल 24 अगस्त को न्यूयार्क टाइम्स ने अपने संपादकीय में घोषणा किया कि आज जो हम जानते हैं अगर पहले जानते होते तो व्यापक सार्वजनिक विरोध से इराक पर आक्रमण को रोक दिया जाता´. इस परिप्रेक्ष्य में इस आश्चर्यजनक प्रतिपादन का कहना था कि पत्रकारों ने अपना काम न करके, बुश एवं उसके गैंग क झूठ को किसी तरह चुनौती देने तथा उसको उजागर करने के बदले में उसे स्वीकार करते हुए, प्रसारित करते हुए तथा उसकी हां मे हां मिलाकर जनता को धोखा दिया है, छला है. टाईम्स ने जो नहीं कहा वह यह कि उसक पास ही वह समाचार पत्र है और बाकी की मीडिया ने अगर झूठ उजागर किया होता तो आज लाखों लोग जिंदा होते. अभी कई वरिष्ठ स्थापित पत्रकारों का भी यही मानना है. उनमें से कुछ- इस बारे में वे मुझसे बोलते हैं- मात्र कुछ ही सार्वजनिक तौर पर कुछ बोल सकेंगे.

विडंबना की बात है कि जब मैने सर्वसत्तावादी समाजों की रिपोटिंग किया तब यह समझना शुरू किया कि तथाकथित स्वतंत्र समाजों में सेंसरशिप कैसे काम करती है. 1970 के दशक में मैने चेकोस्लोवाकिया पर गुप्त ढंग से फिल्म बना रहा था, तब वहां स्तालिनवादी तानाशाही थी. मैने विद्रोही समूह चार्टर 77 के सदस्यों का साक्षात्कार लिया जिसमें उपन्यासकार ज्देनर उरबनेक भी थे. उन्होंने मुझे बताया कि `एक परिप्रेक्ष्य में, तानाशाही में भी हम, आप पश्चिमी लोगों से ज्यादा भाग्यशाली हैं. हम समाचार पत्रों में जो कुछ भी पढ़ते हैं और टेलीविजन पर जो कुछ भी देखते हैं उसमें किसी पर भी विश्वास नहीं करते, क्यूंकि हम उसके प्रोपोगेंडा के पीछे देखने तथा पंक्तियों के बीच पढ़ना सीख गए हैं. और आपके जैसे ही हम यह जानते हैं कि वास्तविक सच हमेशा दबा दिया जाता है.

वंदना शिवा इसे `दोयम दर्जे का ज्ञान´ कहती हैं. महान आयरिश कारीगर क्लाड कोकबर्न ठीक ही कहते हैं जब वो लिखते हैं कि `जब तक आधिकारिक तौर पर इंकार नहीं किया जाता तब तक कुछ भी नहीं मानना चाहिए´

एक बहुत पुरानी उक्ति है कि युद्ध में `सच´ सबसे पहले घायल होता है. नहीं ऐसा नहीं है. पत्रकारिता सबसे पहले दुघZटनाग्रस्त होती है. जब वियतनाम युद्ध समाप्त हो गया तब `इनकांऊटर´ पत्रिका ने युद्ध को कवर करने वाले प्रसिद्ध संवाददाता राबर्ट इलीगंट का एक आलेख छापा था. `आधुनिक इतिहास में पहली बार हुआ है कि, उन्होंने लिखा, `युद्ध के परिणाम का निर्धारण लड़ाई के मैदान में नहीं बल्कि मुद्रित पन्नों पर, और सबसे ऊपर टेलीविजन के पर्दे पर हुआ´ उन्होंने युद्ध में पराजय के लिए उन पत्रकारों को जिम्मेदार ठहराया जिन्होंने अपनी रिपोटिंग में युद्ध का विरोध किया. राबर्ट इलीगंट का दृष्टिकोण वाशिंगटन के लिए `महाज्ञान की प्राप्ति´ था और अभी भी है. इराक में, पेंटागन ने गडे़ हुए पत्रकारों को खोज निकाला क्योंकि उसका मानना था कि आलोचनात्मक रिपोटिंग ने वियतनाम में उसे हराया था.

बिल्कुल विपरीत ही सच था. सैगन में, युवा रिपोर्टर के रूप में मेरे पहले दिन प्रमुख समाचार पत्रों तथा टेलीविजन कंपनियों के महकमें मे मुझे बुलाया गया. वहां मैने पाया कि दीवार में बोर्ड ट¡गे हुए थे जिनमें कुछ वीभत्स तस्वीरें लगीं हैं. इनमें से अधिकतर वियतनामियों के शरीर थे और कुछ में अमरीकी सैनिक किसी का अंडकोष या कान उमेंठ रहे हैं. एक दफ्तर में एक आदमी की तस्वीर थी जिसे यातना दी जा रही थी. यातना देने वाले आदमी के ऊपर गुब्बारेनुमा कोष्ठक में लिखा था `वह तुम्हें प्रेस से बात करना सिखायेगा´. इनमें से एक भी तस्वीरें कभी भी प्रकाशित नहीं हुईं. मैने पूछा क्यों? तो मुझे बताया गया कि जनता इन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगी. और उन्हें प्रकाशित करना वस्तुनिष्ठ या निष्पक्ष नहीं होगा. पहले पहल तो मैनें इस सतही तर्क को स्वीकार कर लिया. मैं खुद भी जर्मनी और जापान के बीच अच्छे युद्ध की कहानियों के बीच पला बढ़ा था, कि एक नैतिक स्नान से एंग्लों अमरीकी दुनिया को सभी पापों से मुक्ति मिल गई थी. लेकिन वियतनाम में जब मैं लंबे समय तक रुका तो मैंने महसूस किया कि हमारे अत्याचार कोई अलग नहीं थे, यह कोई सन्मार्ग से विचलन नहीं था बल्कि युद्ध अपने आप में एक अत्याचार था. यह एक बड़ी बात थी, और यह बिरले (कदाचित) ही समाचार बन पाया. हलांकि सेना की रणनीति तथा उसके प्रभावों के बारे में कुछ बढ़िया पत्रकारों ने सवाल किया था. लेकिन “आक्रमण´´ शब्द का प्रयोग कभी नहीं किया गया. नीरस शब्द शामिल होना´ (इन्वाल्वड) प्रयोग में किया गया. अमरीका वियतनाम में घिर (फंस गया) है. अपने उद्देश्यों में सुस्पष्ट, एक भयानक दैत्य, जो एशिया के दलदल में फंस गया है, का गल्प निरंतर दोहराया गया. यह डेनियल इल्सबर्ग तथा सेमूर हर्ष जैसे सीटी फूंककर चेतावनी देने वालों पर छोड़ दिया गया जिन्होंने माय लाय नरसंहार को गर्त में पहुंचाया, कि वे घर लौटकर विध्वंसक सच के बारे में बताएं. वियतनाम में 16 मार्च 1968 को जिस दिन माय लाय नरसंहार हुआ था, उस दिन 649 रिपोर्टर मौजूद थे और उनमें से किसी एक ने भी इसकी रिपोटिंZग नहीं किया.

वियतनाम और इराक दोनों जगह, सुविचारित नीतियों तथा तौर तरीकों से नरसंहारों को अंजाम दिया गया. वियतनाम में, लाखों लोगों की जबरन बेदखली तथा निर्बाध गोलाबारी क्षेत्र (फ्री फायर जोन) का निर्माण करके तथा इराक में अमरीकी दबाव के तहत 1990 से ही मध्ययुगीन नाकेबंदी के द्वारा, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के अनुसार, पांच साल से कम के करीब पांच लाख बच्चों को मार दिया गया. वियतनाम और इराक दोनों जगह नागरिकों के खिलाफ सुनियोजित परीक्षण के बतौर प्रतिबंधित औजारों का इस्तेमाल किया गया. एजेंट औरेंज ने वियतनाम में अनुवांशिकी और पर्यावरणीय व्यवस्था को बदल दिया. फौज ने इसे आपरेशन `हेड्स´ कहा. कांग्रेस को जब यह पता चला इसका नाम बदल कर दोस्ताना आपरेशन रैंच हैंड्स रख दिया गया और कुछ भी नहीं बदला. यही ज्यादा ध्यान देने की बात है कि इराक युद्ध में कांग्रेस ने कैसी प्रतिक्रिया जाहिर किया है. डेमोक्रेटों ने इसे थोडा धिक्कारा, इसे दुबारा ब्रांड बनाया और इसका विस्तार किया. वियतनाम युद्ध पर बनने वाली हालीवुड की फिल्में पत्रकारिता का ही एक विस्तार थीं. सोचे तक न जा सकने वाले का सामान्यीकरण. हां, कुछ फिल्में फौज की रणनीति के बारे में आलोचनात्मक रुख लिए हुए थीं लेकिन वे सभी, आक्रमणकारियों की चिंताओं पर अपने आप को केन्द्रित करने के लिए सावधान थीं. इनमें से कुछ शुरुआती कुछ फिल्में अब क्लासिक का दर्जा पा चुकी हैं, इनमें से सबसे पहली है `डीरहंटर´, जिसका संदेश था कि अमरीका पीडित हुआ है, अमरीका को मार पड़ी थी, अमरीकन लड़कों ने प्राच्य बर्बरताओं के खिलाफ अपना बेहतरीन कौशल दिखाया है. इसका संदेश सबसे ज्यादा घातक है क्योंकि डीरहंटर बहुत कुशलतापूर्वक बनाई तथा अभिनीत की गई है. मुझे कहना चाहिए कि यही एक मात्र ऐसी फिल्म है जिसके विरोध में मैं जोर से चीखने के लिए मजबूर हो गया. ओलीवर स्टोन की फिल्म प्लाटून को युद्धविरोधी माना जाता है, और इसमें बतौर मानव वियतनामियों की झलकियां दिखाई हैं लेकिन इसने भी अंतत: यही स्थापित किया कि अमरीकी आक्रमणकारी `शिकार´ बने.

इस आलेख को लिखते बैठते वक्त मैने ग्रीन बैरेट्स का जिक्र करने के बारे में नही सोचा था. जब तक कि अगले दिन मैने पढ़ा कि जान वायन अब तक सबसे प्रभावी फिल्म बनी हुई है. ग्रीन बैरेट्स अभिनीत फिल्म जान वायन मैने मोंटगोमरी अलबामा में 1968 के एक शनिवार की रात में देखा था. (उस वक्त मैं वहां के तत्कालीन कुख्यात गवर्नर जनरल जार्ज वैलेस का साक्षात्कार लेने गया था.) मैं अभी अभी ही वियतनाम से लौटा था और मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह इतनी वाहियात फिल्म है. अत: मैं जोर जोर से हंसने लगा, और हंसता ही गया, हंसता ही गया. और तब तक जब तक कि मेरे चारो ओर के ठंड वातावरण ने मुझे जकड़ नहीं लिया. मेरे सहयोगी, जो दक्षिण में एक उन्मुक्त घुमक्कड़ थे, ने कहा चलो यहां के इस नरक से बाहर निकलें और यहां से नरक जैसे भागें´.

होटल लौटने के रास्ते भर हमारा पीछा किया गया. लेकिन मुझे इसमें संदेह है कि हमारा पीछा करने वाले लोग यह जानते होंगे कि उनके हीरो जान वायन ने झूठ बोला था इसलिए उसने दि्वतीय विश्वयुद्ध की लड़ाई में भाग नहीं लिया था. और फिर वायन के छद्म रोलमाडल ने हजारों अमरीकियों को, जार्ज बुश और डिक चेनी के प्रसिद्ध अपवादों को छोड़कर, मौत के मुंह में धकेल दिया.

पिछले साल, साहित्य का नोबेल पुरस्कार स्वीकार करते हुए नाटककार हेराल्ड पिंटर नें ऐतिहासिक वक्तव्य दिया. उन्होंने पूछा `क्यों´, मैं उन्हें उद्धृत करता हूं, `स्तालिनकालीन रूस में व्यवस्थित बर्बरताएं, व्यापक अत्याचार, स्वतंत्र विचारों का निर्मम दमन पश्चिम में सभी लोगों को अच्छी तरह ज्ञात हो सका जबकि अमरीकी राज्य के अपराध मुश्किल से सतही तौर पर तरह दर्ज हुए हैं और अभी तक प्रमाणित नहीं हो सके हैं. और अभी भी पूरी दुनिया में अनगिनत मनुष्यों की भयावह मौत तथा यातना निरंकुश अमरीकी सत्ता के ही कारण हो रही है. `लेकिन, पिंटर कहते हैं, आप इसे नहीं जानते. यह कभी घटित ही नहीं हुआ. कभी कुछ नही हुआ. यहां तक कि जब सब कुछ हो रहा था तब भी कुछ घटित नहीं हुआ. यह मायने ही नहीं रखता. इसका कोई मतलब नहीं है´. पिंटर के शब्द और ज्यादा आवेगमयी थे. बीबीसी ने ब्रिटेन के सबसे चर्चित नाटककार के इस भाषण को नजरअंदाज कर दिया.

मैने कंबोडिया के बारे में कई वृतचित्रों का निर्माण किया है. इनमें से पहली इयर जीरो: द साइलेंट डेथ आफ कंबोडिया थी. इसमें अमरीकी बमबारी के बारे में विस्तार से बताया गया है जो पोल पोट के उदय का प्रमुख कारक थी. निक्सन और किसिंजर ने जो शुरु किया पोल पोट ने उसका अंत किया. सीआईए की रपटों तक में इस बारे में कोई संदेह नहीं है. इयर जीरो को मैने सार्वजनिक प्रसारण सेवा के लिए प्रस्तावित किया गया था और वाशिंगटन लाया था. सार्वजनिक प्रसारण सेवा के जिन अधिकारियों ने इसे देखा वे भौचक्के रह गए. वे आपस में कुछ फुसफुसाए. उन्होंने मुझे बाहर इंतजार करने को कहा. अंतत: उनमें से एक प्रकट हुआ और कहा हम आपके फिल्म की तारीफ करते हैं. लेकिन संयुक्त राज्य ने पोल पोट के लिए मार्ग प्रशस्त किया यह सुनकर हम हैरान हैं´ मैने कहा `आपको साक्ष्यों पर कोई आपत्ति है?´ और मैने सीआईए के कई दस्तावेजों को उद्धृत किया. `अरे, नहीं´ उसने जबाव दिया. `लेकिन हमने इसे पत्रकारों की निर्णायक समिति के आगे पेश करने को सोचा है´.

अब यह शब्द `पत्रकार न्यायाधीश´ जार्ज आरवेल द्वारा शायद खोज लिया गया है. वास्तव में उन्होंने तीन में से एक पत्रकार को खोजने का प्रबंध कर लिया गया जिसे पोल पोट द्वारा कंबोडिया निमंत्रित किया गया था. और निश्चित तौर पर उसने इस फिल्म को अपना ठेंगा दिखा दिया होगा.सार्वजनिक प्रसारण सेवा से मुझे फिर दुबारा कभी कुछ सुनने को नहीं मिला.इयर जीरो को तकरीबन साठ देशों में प्रसारित किया गया और यह दुनिया भर में देखी जाने वाली डाक्यूमेंट्री में से एक है.संयुक्त राज्य में इसे कभी नहीं दिखाया गया. कंबोडिया पर बनाई गई मेरी 5 फिल्मों में से, एक को न्यूयार्क सार्वजनिक प्रसारण केंद्र के एक स्टेशन डब्ल्यू नेट पर दिखाया गया. मुझे लगता है कि इसे भोर में दिखाया गया था. इस एक मात्र प्रदर्शन के आधार पर, जबकि अधिकांश लोग सो रहे थे, इसे एक पुरस्कार दे दिया गया. क्या अद्भुत विडंबना है. यह एक पुरस्कार की पात्रता थी, श्रोताओं की नहीं.

मेरा मानना है कि हेराल्ड पिंटर का विद्रोही सच था कि उन्होंने फासीवाद और साम्राज्यवाद के बीच संबंध बनाया तथा इतिहास के लिए लड़ाई को व्याख्यायित किया जिसकि शायद कभी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. मीडिया युग की यह एक व्यापक चुप्पी है. और प्रोपोगेंडा का यही गुप्त उदगम स्थल है, एक विस्तृत फलक का प्रोपोगेंडा जिससे मैं हमेशा अचंभित हो जाता हूं कि कई अमरीकन उससे कहीं ज्यादा इसे जानते और समझते हैं जितना वे करते हैं. हम एक व्यवस्था के बारे में बात कर रहे हैं, निश्चित तौर पर किसी व्यक्ति के बारे में नहीं. और फिर भी अधिकांश लोग यही सोचते हैं कि समस्या जार्ज बुश और और उसका गैंग है. और हां, बुश और उसके गैंग सबसे प्रमुख हैं, लेकिन इसके पहले जो कुछ हो चुका है ये लोग उसकी चरम सीमा से ज्यादा कुछ नहीं हैं. मेरे जीवन काल में, रिपब्लिकनों की तुलना में उदार डेमोक्रेट द्वारा ज्यादा युद्ध शुरू किए गये हैं. इस सच को नजरअंदाज करना इस बात की गारंटी है कि प्रोपोगेंडा तंत्र तथा युद्ध निर्माण करने वाली व्यवस्था जारी रहेगी. हमारे यहां डेमोक्रेटिक पार्टी की शाखा है जो ब्रिटेन में दस सालों से सरकार चला रही है. ब्लेयर, जो घोषित तौर पर उदारपंथी है, ने ब्रिटेन को आधुनिक युग के किसी भी प्रधानमंत्री से कई बार ज्यादा, युद्ध में झोंका है. हां उसका वर्तमान साझीदार जार्ज बुश है लेकिन बीसवीं सदी के अंत का सबसे हिंसक राष्ट्रपति क्लिन्टन उसकी पहली पसंद था. ब्लेयर का उत्तराधिकारी गार्डन ब्राउन भी क्लिन्टन और बुश का भक्त है. एक दिन ब्राउन ने कहा कि `ब्रिटेन को ब्रिटिश साम्राज्य के लिए माफी मांगने के दिन अब लद गए. हमें उत्सव मनाना चाहिए.

ब्लेयर और क्लिन्टन की ही तरह ब्राउन भी उदारवादी सच को मानता है कि इतिहास के लिए युद्ध को जीता जा चुका है( कि ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में भारत में अकाल भुखमरी से लाखों लोग जो मारे गए हैं उसे भुला दिया जाना चाहिए. जैसे अमरीकी साम्राज्य में जो लाखों लोग मारे जा रहे हैं, उन्हें भुला दिया जाएगा. और ब्लेयर जैसे उसका उत्तराधिकारी भी आश्वस्त है कि पेशेवर पत्रकारिता उसके पक्ष में है, अधिकतर पत्रकार ऐसे विचारधारा के प्रतिनिधिक संरक्षक हैं, भले इसे वे महसूस करें या न करें, जो अपने आपको गैर विचारधारात्मक कहती है, जो अपने आपको प्राकृतिक तौर पर, केन्द्रिय तथा जो आधुनिक जीवन का प्रमुख आधार ठहराती है. यह बहुत ही अच्छा है कि अभी भी हम सबसे शक्तिशाली तथा खतरनाक विचारधारा को जानते हैं जिसका खुले तौर पर अंत हो चुका है. वह है उदारवाद. मैं उदारवाद के गुणों से इंकार नहीं कर रहा हूं, मैं इससे बहुत दूर हूं. हम सभी उसके लाभार्थी हैं. लेकिन अगर हम उसके खतरों से,खुले तौर पर अंत हो चुकी परियोजनाओं से तथा इसके प्रोपोगेंडा की सभी उपभोक्ता शक्तियों से इंकार करते हैं तब हम सच्चे लोकतंत्र के अपने अधिकार से इंकार कर रहे हैं. क्योंकि उदरवाद और सच्चा लोकतंत्र (जनवाद) एक ही नहीं हैं. उदारवाद 19 वीं शताब्दी में अभिजात्य लोगों के संरक्षण से प्रारंभ हुआ था. और जनवाद कभी भी अभिजात्य लोगों के हाथों में नहीं सौपा जा सकता. इसके लिए हमेशा लड़ाई लड़ी गई है. और संघर्ष किया गया है.

युद्ध विरोधी गठबंधन, युनाइटेड फार पीस एंड जस्टिस की एक वरिष्ठ अधिकारी ने अभी हाल में ही कहा, और मैं उन्हें उद्धृत कर रहा हूं, कि `डेमोक्रेटिक यथार्थ की राजनीति का प्रयोग कर रहे हैं´. उनका उदारवादी ऐतिहासिक यथार्थ वियतनाम था. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जानसन ने वियतनाम से सैन्य दलों की वापसी तभी शुरू किया जबकि डेमोक्रेटिक कांग्रेस ने युद्ध के खिलाफ मतदान प्रारंभ किया. जो हुआ यह नहीं था. वियतनाम से चार साल के लंबे समय के बाद सैनिकों का हटना शुरू हुआ. और इस दौरान संयुक्त राज्य ने वियतनाम, कम्बोडिया और लाओस में पिछले कई वर्षो में मारे गए लोगों से कहीं ज्यादा लोगों को बमों से मार गिराया. और यही सब इराक में भी हो रहा है. पिछले वर्षो में बमबारी दुगुनी हो गई है. और अभी तक इसकी रिपोर्ट कहीं नहीं आई है. और इस बमबारी की शुरुआत किसने किया? क्लिन्टन ने इसे शुरू किया. 1990 के दशक के दौरान क्लिन्टन ने इराक के उन इलाकों पर बमों की बरसात किया जिसे शिष्ट – नम्र शब्दों में उड़ान रहित क्षेत्र (फ्री फायर जोन) कहा जाता था. इसी काल में उसने इराक की मध्ययुगीन नाकेबंदी किया जिसे “आर्थिक प्रतिबंध´´ कहा गया, जिसमें, मैने पहले भी जिक्र किया है कि पांच लाख बच्चों की दर्ज मौतों के अलावा लाखों लोगों को मार दिया गया. इनमें से किसी एक भी नरसंहार के बारे में तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया में लगभग कुछ नहीं बताया गया है. पिछले साल जान हापकिंस सार्वजनिक स्वास्थ्य विद्यापीठ नें अपने एक अध्ययन में बताया है कि इराक पर आक्रमण के बाद से छ: लाख पचपन हजार इराकियों की मौत आक्रमण के प्रत्यक्ष परिणामों के कारण हुई हैं. आधिकारिक दस्तावेज बताते हैं कि ब्लेयर सरकार इन आंकडों के बारे में जानती थी कि ये विश्वसनीय हैं. इस रिपोर्ट के लेखक लेस राबर्ट ने कहा कि ये आंकडें फोर्डम विश्वविद्यालय द्वारा रुवांडा नरसंहार के बारे में कराए गए अध्ययन के आंकडों के बराबर हैं. राबर्ट के दिल दहला देने वाले रहस्योद्घाटन पर मीडिया मौन बनी रही. एक पूरी पीढ़ी की संगठित हत्या के बारे में क्या कुछ अच्छा हो सकता है, हेराल्ड पिंटर के शब्दों में कहें तो `कुछ हुआ ही नहीं. यह कोई मामला नहीं है´.

अपने आप को वामपंथी कहने वाले कई लोगों ने बुश के अफगानिस्तान पर आक्रमण का समर्थन किया. इस तथ्य को नजर अंदाज कर दिया गया कि सीआईए ने ओसामा बिन लादेन का समर्थन किया था. क्लिन्टन प्रशासन ने तालिबानियों को गुप्त तरीके से प्रोत्साहित किया था, यहां तक कि उन्हें सीआईए में उच्च स्तरीय समझाइश दी गई थी, यह सब संयुक्त राज्य में सामान्यत: अनजान बना हुआ है. अफगानिस्तान में एक तेल पाइपलाईन के निर्माण में बड़ी तेल कंपनी यूनोकल के साथ तालिबानियों ने गुप्त भगीदारी किया था. और क्लिन्टन प्रशासन के एक अधिकारी से कहा गया कि `महिलाओं के साथ तालिबानी खराब व्यवहार कर रहे हैं´ तो उसने कहा कि `हम ऐसे में भी उनके साथ रह रहे हैं.´ इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि बुश ने तालिबान पर हमला करने का जो निर्णय लिया वह 9/11 का परिणाम नहीं था. बल्कि यह दो महीने पहले जुलाई 2001 में ही तय हो चुका था. सार्वजनिक तौर पर यह सब संयुक्त राज्य में सामान्यत: लोगों की जानकारी में नहीं है. जैसे अफगानिस्तान में मारे गए नागरिकों की गणना के बारे में लोगों को कुछ मालूम नहीं है. मेरी जानकारी में, मुख्यधारा मे सिर्फ एक रिपोर्टर, लंदन में गार्डियन के जोनाथन स्टील ने अफगानिस्तान में नागरिकों की मौत की जांच किया है और उनका अनुमान है कि 20000 नागरिक मारे गए हैं और यह तीन साल पहले की बात है.

तथाकथित वाम की गहरी चुप्पी तथा आज्ञानुकूलिता की बड़ी भूमिका के कारण फिलिस्तीन की चिरस्थायी त्रासदी जारी है. हमास को लगातार इजरायल के विध्वंस के लिए तैयार तलवार के रूप में व्याख्यायित किया जा रहा है. आप द न्यूयार्क टाइम्स, एशोसिएट प्रेस, बोस्टन ग्लोब को ही लीजिए. वे सभी इस उक्ति को स्तरीय घोषणा के बतौर इस्तेमाल करते हैं. और जबकि यह गलत है. हमास ने दस साल के लिए युद्ध विराम की घोषणा किया है जिसकी रिपोटिंग लगभग नहीं की गई है. इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि हमास में पिछले वर्षो में एक ऐतिहासिक विचारधारात्मक परिवर्तन (शिफ्टिन्ग) हुआ है जो, जिसे इजराइल का यथार्थ कहते हैं उसे मान्यता प्रदान करता है, लगभग अज्ञात है. और फिलिस्तीन के विध्वंस के लिए इजरायल जैसी तलवार है वह अकथनीय ही है.

फिलिस्तीन की रिपोटिंग पर ग्लास्गो विश्वविद्यालय द्वारा आंखें खोल देने वाला अध्ययन किया गया है. ब्रिटेन में टी.वी. समाचार देखने वाले युवाओं का उन्होंने साक्षात्कार लिया. 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का सोचना था कि फिलिस्तीनी अवैधानिक ढंग से बसे हुए हैं. डैनी स्चेक्टर के प्रसिद्ध मुहावरे के अनुसार `वे ज्यादा देखते हैं, बहुत कम वे जानते हैं´.

वर्तमान में सबसे भयानक चुप्पी परमाणु शस्त्रों तथा शीत युद्ध की वापसी पर है. रूसी स्पष्टत: समझते हैं कि पूर्वी यूरोप में तथाकथित अमरीकी सुरक्षा ढाल उन्हें नष्ट करने तथा नीचा दिखाने के लिए बनाई गई है. फिर भी यहां पहले पन्नों में यही होता है कि पुतिन एक नया शीत युद्ध प्रारंभ कर रहे हैं. और पूरी तरह से विकसित नई अमरीकी परमाणु व्यवस्था, जिसे भरोसेमंद शस्त्रों की बदली (रेलिएबल वीपन्स रिप्लेसमेंट) कहते हैं, जो लंबे समय से स्थगित महत्वाकांक्षा- —त्रिम युद्ध तथा परमाणु युद्ध के बीच की दूरियों को पाटने के लिए बनाई (डिजाईन) गई है. उसके बारे में चुप्पी है.

इस बीच ईरान को पर निशाना साधा जा रहा है, जिसमें मीडिया लगभग वही भूमिका निभा रहा है जैसी कि इराक पर आक्रमण के पूर्व निभा रहा था. और देखिए कि डेमोक्रेटों के लिए, बराक ओबामा कैसे विदेशी संबंधों के आयोग, वाशिंगटन पर राज्य करने के लिए पुराने उदारवादियों के लिए प्रोपोगेंडा रचने वाले प्रमुख अंग, का स्वर बन गया है. ओबामा लिखता है कि वह सैनिकों की वापसी चाहता है, `हम लंबे समय से प्रतिवादी इरान और सीरिया के खिलाफ सैन्य शक्ति द्वारा आक्रमण नहीं करेंगे. उदारवादी ओबामा से यह सुनिए, ´`पिछली शताब्दी में महान खतरों के क्षण में हमारे नेताओं ने दिखाया कि अमरीका ने अपने कार्यो तथा उदाहरणों द्वारा दुनिया का नेतृत्व किया तथा उ¡चा उठाया, कि हम लाखों लोगों की चहेती आजादी के लिए, उनके क्षेत्र की सीमाओं से आगे जाकर लडे़ और उनके पक्ष में खडे़ हुए´´.

प्रोपोगेडा की यही गांठ है, अगर आप चाहते हैं तो आपको बहका सके, जिसमें उसने हर अमरीकी के जीवन को और हमारे जैसे कईयों को, जो अमरीकी नहीं हैं, लपेटा है. दक्षिण से वाम तक, धर्मनिरपेक्ष से ईश्वर को पूजने वाले तक बहुत कम लोग जो जानते हैं वह यह कि संयुक्त राज्य के प्रशासन ने पचासों सरकारों को उखाड़ फेंका है. और उनमें से अधिकतर लोकतांत्रिक थीं. इस प्रकिया में तीस देशों पर आक्रमण तथा बमबारी की गई जिसमें अनगिनत जानें गईं. बुश का प्रहार बहुत खुला हुआ है, और यह निर्णायक है, लेकिन जिस क्षण हम डेमोक्रेटों के लाखों लोगों द्वारा चहेती आजादी के लिए लड़ने तथा उनके पक्ष में खडे़ होने की बकवाद तथा उनके कुटिल आह्वान स्वीकार करते हैं, इतिहास की लड़ाई में हार जाते हैं, और हम खुद भी मौन हैं.

तो हमें क्या करना चाहिए? जब कभी मैं सभाओं में मैं जाता हूं अक्सर यह सवाल पूछा जाता है, और अपने आप में मजेदार बात ये कि इस सम्मेलन जैसे ज्यादा जानकारी वाली सभाओं में भी यही सवाल पूछा जाता है. मेरा अपना अनुभव है कि तथाकथित तीसरे देशों की जनता शायद ही इस तरह के प्रश्न पूछती है क्योंकि वे जानते हैं कि क्या करना है. और कुछ अपनी स्वतंत्रता तथा अपने जीवन का मूल्य चुकाते है. लेकिन वे जानते हैं कि क्या करना चाहिए. यह एक ऐसा प्रश्न है कि कई डेमोक्रेटिक वामपंथियों को इसका अभी भी जवाब देना है.

अभी भी वास्वविक स्वतंत्र सूचनाएं सभी के लिए प्रमुख शक्ति बनी हुई है. और मेरा मानना है कि हमें इस विश्वास के जाल में नहीं फसना चाहिए कि मीडिया जनता की आवाज है, जनता के लिए बोलती है. यह स्तालिनवादी चेकोस्लोवाकिया में सच नहीं था और संयुक्त राज्य में यह सच नहीं है.

अपने पूरे जीवन भर मैं एक पत्रकार ही रहा हूं. मैं नहीं जानता कि जनता की चेतना कभी भी इतना तेजी से बढ़ी थी जितना कि आज बढ़ रही है. हलांकि इसका आकार तथा इसकी दिशा बहुत स्पष्ट नहीं है. क्योंकि, पहला तो, लोगों में राजनीतिक विकल्पों के बारे में गहरा संदेह है और दूसरा कि डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव में भाग लेने वाले वामपंथियों को पथभ्रष्ट करने तथा उन्हें आपस में विभाजित करने में सफल हो गई है. फिर भी जनता की की बढ़ती आलोचनात्मक जागरुकता ज्यादा महत्वपूर्ण है जबकि आप देख सकते हैं लोग बडे़ पैमाने पर सिद्धांत विहीनता, जीवन जीने के सर्वोत्तम रास्ते के मिथकशास्त्र, को अपना रहे हैं तथा वर्तमान में डर से विनिर्मित स्थितियों में जी रहे हैं.

पिछले साल, न्यूयार्क टाइम्स अपने संपादकीय में स्पष्ट/साफ ढंग से सामने क्यों आया? इसलिए नहीं कि यह बुश के युद्ध का विरोध करता है- ईरान के कवरेज को देखिए. वह संपादकीय एक बमुश्किल स्वीकृति थी कि जनता मीडिया की प्रछन्न भूमिका को समझना शुरू कर रही है तथा लोग `पंक्तियों के बीच´ पढ़ना सीख रहे हैं.

अगर ईरान पर आक्रमण किया गया तो प्रतिक्रिया तथा उथल पुथल का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. राष्ट्रीय सुरक्षा तथा घरेलू सुरक्षा के लिए राष्ट्रपति को मिले दिशानिर्देश, बुश को आपातकाल में ही सरकार सभी पहलुओं की शक्ति देते हैं. यह असंभव नहीं है कि संविधान को ही बर्खास्त कर दिया जाए- सैकडों हजारों तथाकथित आतंकवादियों तथा दुश्मनों का मुकाबला करने तथा उनकी धर पकड़ करने वाले कानूनों को पहले ही किताबों में बंद कर दिया गया है. मुझे लगता है कि जनता इन खतरों को समझ रही है, जिन्होंने 9/11 के बाद लंबा रास्ता तय किया है तथा सद्दाम हुसैन तथा अलकायदा के बीच रिश्तों के प्रोपोगेंडा के बाद तो एक बहुत लंबा रास्ता तय किया है. इसलिए इन्होंने पिछले साल नवंबर में डेमोक्रेट्स लोगों को सिर्फ धोखा खाने के लिए वोट दिया. लेकिन उन्हें सच चाहिए और पत्रकार को सच का एजेंट होना चाहिए, सत्ता का दरबारी नहीं.

मेरा मानना है कि पांचवा स्तंभ संभव है, जनआंदोलन के सहयोगी कारपोरेट मीडिया को खंड खंड करेंगे, जवाब देंगे तथा रास्ता दिखाएंगे. प्रत्येक विश्वविद्यालयों में, मीडिया अध्ययन के हरेक कालेजों में, हर समाचार कक्षों में पत्रकारिता के शिक्षकों, खुद पत्रकारों को वाहियात वस्तुनिष्ठता के नाम पर जारी खून खराबे के दौर में अपनी निभाई जा रही भूमिका के बारे में प्रश्न करने की जरूरत है. खुद मीडिया में इस तरह का आंदोलन एक पेरोस्त्रोइका (खुलेपन) का अग्रदूत होगा जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते. यह सब संभव है. चुप्पी तोड़ी जा सकती हैं.

ब्रिटेन के `राष्ट्रीय पत्रकार संघ´ (नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट) ने एक जबर्दस्त विद्रोह लाया है और इजरायल का बहिष्कार करने का आह्वान किया है. मीडियालेन्स डाट आर्ग नामक वेबसाइट ने अकेले बीबीसी को जिम्मेदार होने को कहा है. संयुक्त राज्य में स्वतंत्र विद्रोही स्पिरिट की वेबसाइटें दुनिया भर में खूब लोकिप्रय हो रही हैं. टाम फीले की इंटरनेशनल क्लीयरिंग हाऊस से लेकर माइक अल्बर्ट की जेडनेट, कांऊटरपंच आनलाइन तथा फेयर के बेहतरीन कार्यो तक, मैं सभी का जिक्र कर सकता हूं. इराक पर सबसे बेहतरीन रिपोटिंग डार जमैल की साहसी पत्रकारिता है तथा जोय वाइिल्डंग जैसे नागरिक पत्रकार जिन्होंने फलूजा शहर से फलूजा की नाकेबंदी की रिपोटिंग की है, वेब पर ही आईं हैं.

वेनेजुएला में, ग्रेग विल्पर्ट की जांच रिपोर्ट अब शावेज को निशाना बनाने के लिए उग्र प्रोपोगेंडा ज्यादा बन गई है, कोई गलती मत कर बैठियेगा, यह वेनेजुएला में बहुमत की अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा है. भ्रष्ट आरसीटीवी की ओर से पश्चिम में वेनेजुएला के खिलाफ अभियान के पीछे का झूठ है. बाकी के हम लोगों के लिए यह एक चुनौती है कि इस विध्वंसक/पथभ्रष्ट जानकारी की गोपनीयता का भंडाफोड़ करें तथा इसे साधारण लोगों के बीच में ले जाएं.

यह सब हमें जल्द ही करना होगा. उदारवादी लोकतंत्र अब कार्पोरेट तानाशाही का आकार ग्रहण कर रहा है. यह एक ऐतिहासिक विचलन (शिफ्ट) है तथा मीडीया को इसके मुखौटे को बिल्कुल अनुमति नहीं देनी चाहिए. बल्कि इसे लोकिप्रय, ज्वलंत मुद्दा बनाकर सीधी कार्यवाही का विषय बनाना चाहिए. महान सचेतक टाम पेन ने चेतावनी दिया था कि अगर अधिकांश लोग सच तथा सच के विचारों से इंकार करने लेगेंगे तो भयंकर तूफानों का दौर होगा, जिसे वह “शब्दों का बास्तील´´ कहते हैं. अभी वही समय है.

अनुवादक म.गा.अं.हि.वि.वर्धा में जनसंचार विभाग में अध्ययनरत हैं.

0 thoughts on “एक अदृश्य सत्ता : जान पिल्गर : अनुवाद – अनिल”

  1. भाई, बहुत सुंदर आलेख है। इसे दो या तीन कड़ियों में दिया जा सकता था। लम्बा है।
    झूठ की सत्ता हर व्यवस्था अपनी अपनी उम्र बढ़ाने के लिए कायम करती है।

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