
युवा कवि गिरिराज किराडू प्रतिलिपि नाम की एक पत्रिका निकलते हैं , जिसके प्रिंटेड रूप से मै परिचित नहीं पर नेट पर हर कोई इस पत्रिका से परिचित है। इसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कई - कई धाराओं के कई - कई विशिष्ट लेखकों को एक जगह पढ़ा जा सकता है। इस बार के अंक में मुझे प्रभात नाम का ये अद्भुत कवि मिला। इस कवि की दो कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं ...... मूल पत्रिका के प्रति आभार के साथ।
गीला भीगा पुआल
कौन ला रहा है सरसों के फूलों के झरने
किसने खोला दरवाजा बर्फानी हवाओं का
कैसे चू आये एकाएक रात की आंख से खुशी के आँसू
तो तुम आ गए
यहाँ बैठो
त्वचा के बिल्कुल करीब
गीला भीगा पुआल
मेरे पिता का एक था
शहर में वहाँ रहता हूँ
जहां मुसलमान नहीं रहते
अब मेरे पास बची हैं स्मृतियां
करीमा सांईं, मुनीरा सांईं
अशरफ़ चचा, चाची सईदन
बन्नो, रईला
हमारे घर आना जाना
उठना बैठना था उनका
कुछ ऐसी होती गई बीते दिनों
बकौल मीना कुमारी
‘हम सफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा-तनहा’
अच्छी कविताएं !
ReplyDeleteसच कहा भाई। दोनों चलते रहे तन्हा- तन्हा ....
ReplyDeleteसचमुच बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशिरीष भाई आपका ईपता तो कहीं मिला नहीं।
अच्छी कवितायें पढ़वाने के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteAAPKE BHAV HAIN JINHONE SHABDO KE MADHYAM SE KAVITA KA RUP LE LIYA. NARAYAN NARAYAN
ReplyDeletegaon ke pual ke atmiy swad ke bad shahar ke ilakon se musalmano ki anupasthiti....adbhut aur taja abhivyakti...apki parkhi nigahon ko dhanyavad
ReplyDeleteprabhat ki kavitayen bahut sundar hai.
ReplyDeleteसचमुच ग़ज़ब की कवितायें
ReplyDeleteइनकी और कवितायें प्रकाशित करें…प्लीज़
बहुत ही अच्छी कवितायेँ. प्रभात को बधाई.
ReplyDeleteप्रभात से परिचय पहली बार यहीं हुआ था. उसके बाद उनकी कविताएँ ढूंढ-ढूंढ कर पढीं.
ReplyDeleteआज कविता समय की उस जूरी का हिस्सा होने के कारण,जिसने प्रभात को कविता समय सम्मान-२०१२' देने की घोषणा की है...अनुनाद का हार्दिक आभार!