अनुनाद

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वीरेन डंगवाल की कविता – नैनीताल “एक अधेड़ उधेड़बुन”

ये कविता वीरेन जी के नौजवानी के शहर नैनीताल की है और उनके लिए बहुत ख़ास है। अब ये मेरे लिए भी ख़ास होती जा रही है ! मुझे अब इसी शहर में ज़िन्दगी गुज़ार देनी है और उसमें वे अधेड़ उधेड़बुन के दिन आने भी तय हैं! नीचे की तस्वीर में इन दिनों का नैनीताल है ! दिसम्बर के खुले आसमान वाला दुर्लभ नैनीताल !
सुंदर है न ?




आंखों पर पानी
क्युबिकों फीट पानी का ठंडा दबाव सहते
देखता है एक अधेड़ तैराक
कई अनूठे दृश्य
महसूस करता फेफडों का सुशीतल पानी निगलना



एक दमकती हुयी डबलरोटी की ओट में देखी मैंने
युवा शरारत की लालसा

संजोये हुए रुपहले केशों में गौरैयों ने डाल दिए थे
तिनके
उतरता बसंत
उनके घर बसाने का समय है

काफ़ी पी जाए
सुना जाए संगीत
देखा जाए
अपने ऊपर ढहते अपने घर को
बैठकर पुरानी आरामकुर्सी पर



होठों में खुश्की
झरना किसी शानदार द्वार से
रंग की एक कत्थई पतली परत का

यह भी प्रेम है शायद
इस सबको देख पाना



अगर तुम्हारा कुत्ता तुम्हारा कहना मानता हो
तभी मुझे अपने घर बुलाना

अगर तुम्हारी माँ ऊंचा सुनती हो
तभी मुझे अपने घर बुलाना

अगर तुम्हारा मन अठखेलियाँ करता हो
तभी मुझे अपने घर बुलाना



घुटने दुखते हैं चढान में
मन लेकिन काकड़ – हिरन – हृष्ट पुष्ट नीलगाय

झकझोर मीठी जलेबी खायी तो तुम्हें याद किया
पतलून की पेटी पर चाशनी पोंछी तो तुम्हें याद किया
दूर से मोटर रोड देखी तो तुम्हें याद किया

और तो और
तुम्हें देखा तो भी तुम्हें याद किया !
***

0 thoughts on “वीरेन डंगवाल की कविता – नैनीताल “एक अधेड़ उधेड़बुन””

  1. “तुम्हे देखा तो भी तुम्हे याद किया”

    बहुत अच्छे! नैनीताल को देखा बाद में, जिया पहले शिवानी के उपन्यासों में पर शिरीष जी कौसानी जाने के बाद नैनीताल में ज़रा मन नही लगा फिर

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