
दोस्तो !
मैं उतना हताश भी नहीं पर कहना चाहता हूं कि वो ज़माना और था, जब का यह गीत है और इसे लिखने-गाने वाले गोरख पांडे और महेश्वर भी !
फिलहाल आप सुनिये गोरख के इस गीत को महेश्वर और साथियों की आवाज़ में...
मैं उतना हताश भी नहीं पर कहना चाहता हूं कि वो ज़माना और था, जब का यह गीत है और इसे लिखने-गाने वाले गोरख पांडे और महेश्वर भी !
फिलहाल आप सुनिये गोरख के इस गीत को महेश्वर और साथियों की आवाज़ में...
(इस गीत को 2 जुलाई 2007 की निस्तब्ध रात में वीरेन डंगवाल के साथ कोरस मिलाकर मैंने, अशोक पांडे और जवाहिर चा ने नैनीताल की सुशीतल झील के किनारे गाया था। हालांकि हमने गाया और अपने सबसे बुरे समयों में हमेशा गाते रहेंगे... लेकिन तब भी कहूंगा कि वो ज़माना और था!)
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इस पोस्ट के लिए मैं जन संस्कृति मंच का आभारी हूं !
न होता आभारी, अगर ये मंच मेरा हुआ होता......
वाकई वो जमाना और ही था...
ReplyDeleteजनता के पलटनियाँ ना आवे. लेकिन दुनियाँ के झकझोर के हिलावे के जरूरत अबहियों बा.
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट शिरीष भाई.
बहुत उम्दा और अतीत स्मृति को कुरेदने वाली रचना -शुक्रिया ,दीपावली की शुभ कामनाएं !
ReplyDeletenirali /badhiyaa post
ReplyDeleteअद्भुत गीत। सुनवाने के लिये शुक्रिया। दीपावली मुबारक!
ReplyDeleteवाह भाई। ये तो कोरस में गाने वाला गीत ही है। उम्मीद है इसे गाने के बाद मिजाज ठीक हो गया होगा॥
ReplyDeleteमहेश्वर जी की आवाज़ सुनकर आंखे नम हो गई...महेश्वर जी के साथ बीते वो दिन आंखो के सामने घूम आ गये...अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteदिपावली की शूभकामनाऎं!!
ReplyDeleteशूभ दिपावली!!
- कुन्नू सिंह
दीपावली की मँगल कामनाएँ -
ReplyDeleteबेहद आँचलिक और उत्साह भरा गीत सुनवाया
वाह आनंद आ गया। कई दिनों से उनका लिख ढूढ रहा था। पर निकला लिखा मिल नही रहा कही पर। ना लाईब्रेरी में,ना ही दुकान पर, खैर ढूढ ही लेगे। और आज ये सुनने को मिल गया।
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