
उसमें बैलों की ताक़त है और लोहे का पैनापन
एक जवान पेड़ की मज़बूती
किसी बढ़ई की कलाकार कुशलता
धौंकनी की तेज़ आंच में तपा लुहार का धीरज
इन सबसे बढ़कर परती को फोड़कर उर्वर बना देने की
उत्कट मानवीय इच्छा है उसमें
दिन भर की जोत के बाद
पहाड़ में
मेरे घर की दीवार से सटकर खड़ा वह
मुझे किसी दुबके हुए जानवर की तरह लगता है
बस एक लम्बी छलाँग
और वह गायब हो जायेगा
मेरे अतीत में कहीं।
2004
achchhi kavita hai. badhaai.
ReplyDeleteदुनिया भर के कारपोरेटियों के चेहरे पर ताजा जुताई जैसी लकीरें देख कर कहीं यह भी लग रहा है कि क्या पता दीवार से लगी दुबकी इस हिरन जैसी आकृति जिसे गिर्द एक पूरी संस्कृति घूमती थी और वह किसी का असलहा भी था- का जमाना लौट न आए। सुदूर भविष्य में उछलने को न तैयार हो कहीं वो, क्या पता।
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