Saturday, October 4, 2008

तसला


वह मुझे धरती की तरह लगता है
जिसे उठाए
इतने सधे कदमों से चढ़ती-चली जाती हैं बांस के टट्टरों पर
कुछ सांवली और उदास औरतें

उसमें क्या नहीं समा जाता?

एक बार तो अपने दुधमुहें बच्चे को ही
उसमें लिटाए
चली जा रही थी एक ऐसी ही औरत
तब वह उसके हृदय की तरह था

अच्छे से माँज - धोकर आटा भी गूंधा जा सकता है
उसमें
उसी को उल्टा धर आग पर सेंकी जा सकती हैं रोटियां
यह मैंने कल शाम देखा

उसमें औज़ारों की-सी चमक नहीं होती
कोई धार
कोई भारीपन नहीं

बहुत विनम्र होता है वह
औज़ारों में कभी गिना ही नहीं जाता
जबकि उसी पर लदकर आती हैं इमारतें
जब वे खालिस ईंट-गारा होती हैं

उन्हें ढोने वाली औरतें उन्हें ढोती रहती हैं अविराम
चढ़ती जाती है ईंट पर ईंट
गारा भर-भर के उन्हें जोड़ना जारी रहता है
तब तसला
तसला नहीं रहता
एक पक्षी में बदल जाता है
एक काले और भारी पक्षी में
जिसे हम सिरों के ऊपर उड़ता हुआ देखते हैं

कभी अपनी कोई अधूरी इच्छा
ऐसे ही किसी तसले में रखकर देखिए
जैसे वे औरतें रखती हैं अपना बच्चा
या जैसे गूंधा हुआ आटा रख दिया जाता है
या फिर
सुलगा ली जाती है जाड़ों की रात में कोई आग
उसी में धरकर

वो बच्चा एक दिन बड़ा हो जायेगा
मेहनतकश बनेगा
अपने माँ -बाप की तरह
उस आटे की भी रोटियां सिंक जायेंगी
और उस बच्चे का पेट भरेंगी

और वह आग
वह तो तसले में ही नहीं
उस और उस जैसे कई बच्चों के
दिलों में जलेगी

जानना चाहते हैं
तो देखिए-
उस आग की रोशनी में देखिए
क्या आपकी इच्छाएं भी
कभी फलेगी?
० ० ०
'वसुधा' और 'विपाशा' में प्रकाशित

9 comments:

  1. कुछ कहना चाहता था ... कह नहीं सका .. लेकिन पढ़ के कुछ अजब लगा ..

    ReplyDelete
  2. बहुत गहरी रचना है..बेहतरीन. सोचने को मजबूर करती..!!

    ReplyDelete
  3. शिरीष भाई लगायी गयी तस्वीर कविता के अर्थ को सीमित कर दे रही है।

    ReplyDelete
  4. bahut achhi lagi. halanki sirf ye kahna achhi baat nahi. par jo mahsoos hua, use kah paana bhi is waqt mujhse mumkin nahi ho raha

    ReplyDelete
  5. वीरेन डंगवाल जी की कविता पंक्ति याद है आपको-
    'हम रक्त से भरा हुआ तसला हैं...
    और क्या कहूं .
    बहुत बढिया, वैसे 'बढ़िया' शब्द....?
    फ़िर कभी..

    ReplyDelete
  6. bahut badhiya.. kavita

    main theek hun bhaiya
    mere blog par meri tabiyat ka vistar se haalchal hai
    zara ek nazar dalein

    ReplyDelete
  7. गहरे अर्थ हैं और स्‍पष्‍ट भी-
    और वह आग
    वह तो तसले में ही नहीं
    उस और उस जैसे कई बच्चों के
    दिलों में जलेगी

    ReplyDelete

यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्‍य अवगत करायें !

जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्‍यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्‍पणी के स्‍थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्‍तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्‍पणी के लिए सभी विकल्‍प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्‍थान अवश्‍य अंकित कर दें।

आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails