Wednesday, October 1, 2008

जड़ी-बूटियों का गीत


ये छोटी सी कविता २००६ में आउटलुक में छपी थी और उस समय कुछ दोस्तों ने इसे पसंद भी किया था ! अब ये एक बार फ़िर आपके सामने है !






पत्ती-पत्ती देखो हमें डगर-डगर छानो
तय नहीं है हमारा मिलना

हम बहुत छुपी हुई चीज़ें हैं

हम जो ताक़त हैं यौवन हैं
तथाकथित अक्षुण्ण आरोग्य का धन हैं

जंगलों-पहाड़ों में नहीं है अब हमारा डेरा

इस तेज़ी से सिमटती दुनिया में कोई शातिर उस्ताद ही
पा सकता है हमें

कोई
प्रशिक्षित मल्टीनेशनल लुटेरा !

2 comments:

  1. देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर..

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  2. भई कविता पसंद करने योग्य ही है। मल्टीनेशनल लुटेरों को भी पसंद आएगी।

    ReplyDelete

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