Tuesday, September 30, 2008

बेटे के साथ दुनिया

(दो बरस पहले लिखी और वागर्थ में छपी ये कविता मेरी निजी ज़िन्दगी से ताल्लुक रखती है और मुझे अपने पास खींचती है ! कविता जिन महाशय पर है, उनकी फोटू नीचे है ! )


उसे आए अभी पाँच ही बरस हुए हैं
और हम दोनों को बत्तीस
लेकिन हम उतनी नहीं दिखा पाते दुनिया उसे
अकसर वही उठाता है ऊँगली
किसी भी परिचित या अनजान चीज़ की तरफ

कुछ ही समय पहले वह खड़ा हुआ था धरती पर
पहली बार
उसे बेहद कोमल
और जीवन्त चीज़ की तरह इस्तेमाल करता हुआ
डगमगाते चलते थे उसके पाँव
जिन्हें अब वह जमा चुका

हमारी भाषा सीखने से पहले
उसने न जाने कितनी भाषाएँ बोली
हमें कुछ न समझता देख
खीझ कर अकसर ही हाथ-पांवों से समझायी
अपनी बात

वह रोया खूब चीख-चीखकर
और हँसा दुनिया की सबसे बेदाग हँसी
उसे चोट लगी तो दुनिया थम गई
पहली बार स्कूल गया तो हमने किया उसके लौटने तक
जीवन का सबसे लम्बा इन्तज़ार

बिस्तर पर उसे अपने बीच सोता देख पत्नी ने कहा
कई-कई बार - देखो तो
दरअसल हमने किया कितना ख़ूबसूरत प्यार!

हम सोच ही नहीं पाते
कि हम कभी उसके बिना भी थे इस विपुला पृथिवी पर
उसी के साथ तो हमारी दुनिया ने आकार लिया

उसके लिए बेहद जोश से भरे ये दिल
काँपते भी हैं कभी-कभी
आने वाली दुनिया में उसके किन्हीं अनजान
मुश्किल दिनों के बारे में सोचकर

हम शायद कभी रचकर नहीं दे सकेंगे उसे
दुनिया अपने हिसाब की
निरापद और सुकून से भरी
अपने सफ़र तो वही तय करेगा और एक दिन हमारे बाद
अपने साथ
बेहद चुपचाप
हमारी भी दुनिया रचेगा

फ़िलहाल तो बैठा दिखाई देता है
बिलानागा
पिता की पसन्दीदा कुर्सी पर
कुछ गुनगुनाता

घर के उस इकलौते तानाशाह को
अपदस्थ करता हुआ !
०००
२००६

11 comments:

  1. सबसे पहले तो यह कि कविता जिन महाशय पर है उनको बहुत -बहुत प्यार!

    यह कविता मेरे दिल के बेहद करीब है. मुझे लगता है कि हम लोग संतति के बहाने स्वयं को देखते परखते हैं.खुद के व्यतीत को वर्तमान में रूपायित करने का जादुई कारनामा करते है ये दन्तुरित मुस्कान मुस्कान वाले दोस्त. दिलों के बंद किवाड़ों को खोलती है यह कविता. बहुत बढ़िया.

    और क्या कहूं?
    आज इस कविता को पढ़-देखकर बहुत प्यार उमड़ पड़ रहा है घर के (उस) इकलौते अपदस्थ होते तानाशाह पर!

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  2. kavita likhwane wale mahashay ko salaam. हम शायद कभी रचकर नहीं दे सकेंगे उसे
    दुनिया अपने हिसाब की
    निरापद और सुकून से भरी...padhkar MANGLESH DABRAL ki kavita bachhon ke naam chitthi bhi yaad aa gayi..
    घर के उस इकलौते तानाशाह को
    अपदस्थ करता हुआ !..koshish karna ki vo pitrsatta ka तानाशाह pratinidhi na bane

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  3. जवाहिर चा शुक्रिया, गो वो काफ़ी नहीं आपके प्रेम के मुक़ाबिल !
    धीरेश जी आपकी आत्मीय चेतावनी नोट कर ली गई - आपको भी शुक्रिया !

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  4. प्यारे शिरीष,
    तुम्हारी कविता की तरह बच्चा भी बड़ा प्यारा है...नजर न लगे तुम्हारी प्यारी दुनिया को...बाकी दुनिया की नजर उतारने का उपाय शायद ऐसी ही कविताओं में है।

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  5. प्यारे शिरीष,
    तुम्हारी कविता की तरह बच्चा भी बड़ा प्यारा है...नजर न लगे तुम्हारी प्यारी दुनिया को...बाकी दुनिया की नजर उतारने का उपाय शायद ऐसी ही कविताओं में है।

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  6. प्‍यारा बच्‍चा. सुंदर कविता.

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  7. खीझ कर अकसर ही हाथ-पांवों से समझायी......उसे चोट लगी तो दुनिया थम गई
    पहली बार स्कूल गया तो हमने किया उसके लौटने तक..........हम शायद कभी रचकर नहीं दे सकेंगे उसे
    दुनिया अपने हिसाब की......maa,papa yun hi to hotey hain...hamesha

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  8. जूनियर मौर्य जी को बहुत बहुत प्यार एवं आशीर्वाद.....बहुत बढ़िया आपने अपने मन के भावों को कागज़ पर उतारा है।

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  9. कल्पना की जा सकती है कि तानाशाह को कितने प्यार से प्यारे से बच्चे ने अपदस्थ किया होगा।

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  10. शिरीषभाई,
    अच्छा हुआ आप इसे पुराने पन्नों से निकाल लाए और यहां इसे चस्पां कर दी वरना मैं शायद इसे कभी नहीं पढ़ पाता। यह सचमुच एक प्यारी कविता है, उतनी ही सुंदर जितनी वह प्यारी तस्वीर है।

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  11. कल रात कविता पढी बहुत ही अच्छी लगी। कुछ टिप्पणी लिखने की सोची तो छोटे नवाब जाग गए और लिखना रह गया। आज फिर पढते हुए सोच रही थी कि सचमुच बच्चों के बिना जीवन कैसा था याद ही नहीं है। अब जीवन भरा-पूरा है लेकिन फिर भी कभी कभी दिल ढूंढता है फुरसत के रात-दिन ः)

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