
पिछले साढ़े तीन बरस से वह मेरी राशि में था
अब भी है
किसी करेले-सा मंगल के निकट सानिध्य में
नीम चढ़ा होता हुआ
आगे भी चार बरस रहेगा
फिर उसी ने बताया मेरी राशि का नाम
दुनिया जहान के बारे में मेरी इस अनभिज्ञता पर अचरज करते हुए
उसने बताया पाँच तत्वों से बनी है हमारी देह
इसलिए सौरमंडल से प्रभावित होती है
और यह भी कि
किया जा सकता है
सरसों के तेल के साथ पाँच किलो उड़द के दान से
सुदूर घूमते
परमप्रतापी सूर्यपुत्र शनिदेव
का इलाज
दरअसल मैं इतना अनभिज्ञ भी नहीं था
झाँक ही लेता था
मौके-बेमौके ग्रह नक्षत्रों की आसमानी दुनिया में
जिसकी टिमटिमाती निस्तब्धता
मुझे थाम-थाम लेती थी
क्या कुछ नहीं घटता उस रहस्यलोक में
जिसे हम अन्तरिक्ष कहते हैं
अचानक प्रसिद्धि पाए कवियों सरीखे
चमचमाते
आते धूमकेतु
छोड़ जाते धुंआ छोड़ती पूँछ के
अल्पवजीवी निशान
कहीं से टूटकर आ गिरती
उल्का भी कोई
गड़ती हुई दिल में एक मीठी-सी याद
कभी कोई रोशनी जाती हुई दीखती
बच्चे बहुत उत्तेजित चमकती आंखों से निहारते उसे
शोर मचाते
उन्हीं में से कोई एक सयाना बतलाता
अमरीका के छोड़े उपग्रह हैं यह
कोई कहता हमने भी तो छोड़े हैं कुछ
तो मिलता जवाब
हमारे नहीं चमक सकते इतना
और फिर देखो वह तेज़ भी तो कितना है
अचानक दिख जाती
रात में भटके या फिर शायद शिकार पर निकले
किसी परिन्दे की छाया भी
घुलमिल जाती उसी रहस्यलोक के अ-दृश्यों में कहीं
लेकिन
हमारे वजूद के बहुत पास
हल्के-हल्के आती
पंखों के फड़फड़ाने की आश्वस्तकारी आवाज़
मैं देखता और सुनता चुपचाप
सोचता उन्हीं शनिदेव के बारे में जो
फ़िलहाल
अपना आसमानी राजपाट छोड़
मुझ निकम्मे के घर में थे
पहली बार किसने बनाया होगा
यह विधान
दूर सौरमंडल में घूमते ग्रहों को
अपने पिछवाड़े बाँधने का ?
किसने ये राशियाँ बनाई होंगी
किसने बिठाए होंगे
हमारे प्रारब्ध पर ये पहरेदार ?
दुनिया भर में
अपने हिंसक अतीत से डरे
और भविष्य की घोर अनिश्चितताओं में घिरे
अनगिनत कर्मशील
मनुष्यों ने आख़िर कब सौंप दिया होगा
कुछ चालबाज़ मक्कारों के हाथ
अपने जीवन का कारोबार ?
मत हार!
मत हार!
कहते हैं फुसफुसाते कुछ दोस्त-यार
उनकी मद्धम होती आवाज़ों में
अपनी आवाज़ मिला
यह एक अदना-सा कवि
इस महादेश की पिसती हुई जनता के
इन भविष्यवक्ता
कर्णधारों से इतना ही कह सकता है -
दरअसल मैं इतना अनभिज्ञ भी नहीं था
झाँक ही लेता था
मौके-बेमौके ग्रह नक्षत्रों की आसमानी दुनिया में
जिसकी टिमटिमाती निस्तब्धता
मुझे थाम-थाम लेती थी
क्या कुछ नहीं घटता उस रहस्यलोक में
जिसे हम अन्तरिक्ष कहते हैं
अचानक प्रसिद्धि पाए कवियों सरीखे
चमचमाते
आते धूमकेतु
छोड़ जाते धुंआ छोड़ती पूँछ के
अल्पवजीवी निशान
कहीं से टूटकर आ गिरती
उल्का भी कोई
गड़ती हुई दिल में एक मीठी-सी याद
कभी कोई रोशनी जाती हुई दीखती
बच्चे बहुत उत्तेजित चमकती आंखों से निहारते उसे
शोर मचाते
उन्हीं में से कोई एक सयाना बतलाता
अमरीका के छोड़े उपग्रह हैं यह
कोई कहता हमने भी तो छोड़े हैं कुछ
तो मिलता जवाब
हमारे नहीं चमक सकते इतना
और फिर देखो वह तेज़ भी तो कितना है
अचानक दिख जाती
रात में भटके या फिर शायद शिकार पर निकले
किसी परिन्दे की छाया भी
घुलमिल जाती उसी रहस्यलोक के अ-दृश्यों में कहीं
लेकिन
हमारे वजूद के बहुत पास
हल्के-हल्के आती
पंखों के फड़फड़ाने की आश्वस्तकारी आवाज़
मैं देखता और सुनता चुपचाप
सोचता उन्हीं शनिदेव के बारे में जो
फ़िलहाल
अपना आसमानी राजपाट छोड़
मुझ निकम्मे के घर में थे
पहली बार किसने बनाया होगा
यह विधान
दूर सौरमंडल में घूमते ग्रहों को
अपने पिछवाड़े बाँधने का ?
किसने ये राशियाँ बनाई होंगी
किसने बिठाए होंगे
हमारे प्रारब्ध पर ये पहरेदार ?
दुनिया भर में
अपने हिंसक अतीत से डरे
और भविष्य की घोर अनिश्चितताओं में घिरे
अनगिनत कर्मशील
मनुष्यों ने आख़िर कब सौंप दिया होगा
कुछ चालबाज़ मक्कारों के हाथ
अपने जीवन का कारोबार ?
मत हार!
मत हार!
कहते हैं फुसफुसाते कुछ दोस्त-यार
उनकी मद्धम होती आवाज़ों में
अपनी आवाज़ मिला
यह एक अदना-सा कवि
इस महादेश की पिसती हुई जनता के
इन भविष्यवक्ता
कर्णधारों से इतना ही कह सकता है -
कि बच्चों की किताबों में
किसी प्यारे रंगीन खिलौने-सा लगता
सौरमंडल का सबसे खूबसूरत
यह ग्रह
क्या उसकी इस तथाकथित राशि में
उम्र भर रह सकता है?
2006
किसी प्यारे रंगीन खिलौने-सा लगता
सौरमंडल का सबसे खूबसूरत
यह ग्रह
क्या उसकी इस तथाकथित राशि में
उम्र भर रह सकता है?
2006
( वागर्थ में प्रकाशित )
अच्छी लगी कविता और सवाल भी। हालांकि ऐसे सवाल पूछना अपने सारे ग्रहों से दुश्मनी मोल लेना हो सकता है।
ReplyDeleteशनि को आसमान की 360 डिग्री की 12 राशियों में से 30 डिग्री की एक राशि को पार करने में मात्र ढाई वर्ष ही लगते हैं। किसने कह दिया कि आपकी राशि में वे साढ़े तीन वर्षों से हैं भी और चार वर्ष और रहेंगे भी ? यह तो विज्ञान के नियम के अनुसार कदापि संभव नहीं है। खैर , अच्छे भाव लिए बहुत ही सुंदर कविता लिखने के लिए बधाई।
ReplyDeleteसटीक रचना!! बाकी सुलझान तो संगीता जी कर ही रही हैं, उसका हमें ज्ञान नही.
ReplyDeleteमैं देखता और सुनता चुपचाप
ReplyDeleteसोचता उन्हीं शनिदेव के बारे में जो
फ़िलहाल
अपना आसमानी राजपाट छोड़
मुझ निकम्मे के घर में थे
khoob kaha. shireesh bhai , is sanshay-grast kavi ko yatharth se joojhne ki prerna deti hai ye kavita
प्यारे शिरीष
ReplyDeleteयह कविता आपकी वाणी में ३ जुलाई २००७ की शाम नैनीताल में सुनी थी.आज इसको पढ़ना एक दूसरा अनुभव है.एक पाठक के रूप में मैं यह अनुभव करता हूं कि यह मेरी पसंद की सूची में काफ़ी ऊपर और अहम है.अब ऐसा क्यों है -'कसप'.
मेरे भाई ऐसे ही लिखो
और सबके साथ रहकर भी
सबसे अलग दिखो!