
जब से तुम्हारी दाढ़ी में
सफेद बाल आने लगे हैं
तुम्हारे दोस्त
कुछ ऐसे संकेत पाने लगे हैं
कि तुम
जिन्दगी की शाम से डर खाने लगे हो
और दोस्तों से गाहे-बगाहे नाराज़ रहने लगे हो
लेकिन, सुनो ज्ञान !
हमारे पास जिन्दगी की तपती दोपहर के धूप-बैंक की
इतनी आग बाक़ी है
जो एक सघन फेंस को जला देगी
ताकि दुनिया ऐसा आंगन बन जाए
जहां प्यार ही प्यार हो
और ज्ञान !
तुम एक ऐसे आदमी हो
जिसके साथ या प्यार हो सकता है या दुश्मनी
तुमसे कोई नाराज़ नहीं हो सकता
तुम्हारे दोस्त
पड़ोसी
सुनयना भाभी
तुम्हारे बच्चे
या अपने आप को हिंदी का सबसे बड़ा कवि
समझने वाला कुमार विकल
कुमार विकल
जिसकी जीवन-संध्या में
या अपने आप को हिंदी का सबसे बड़ा कवि
समझने वाला कुमार विकल
कुमार विकल
जिसकी जीवन-संध्या में
अब भी
धूप पूरे सम्मान से रहती है
क्योंकि
धूप पूरे सम्मान से रहती है
क्योंकि
वह अब भी
धूप का पक्षधर है
प्रिय ज्ञान !
आओ हम
अपनी दाढ़ियों के सफेद बालों को भूल जाएं
और एक ऐसी पहल करें
कि जीवन-संध्याएं
दोपहर बन जाएं !
प्रिय ज्ञान !
आओ हम
अपनी दाढ़ियों के सफेद बालों को भूल जाएं
और एक ऐसी पहल करें
कि जीवन-संध्याएं
दोपहर बन जाएं !
(कुमार विकल का २३ फरवरी १९९७ में निधन हो गया, लेकिन उनकी कवितायें विरासत बनकर हमारे साथ हैं और हमेशा रहेंगी। इधर सूचना मिली है कि वेणुगोपाल नहीं रहे। उनकी याद के साथ उनके समानधर्मा कवि कुमार विकल की यह पोस्ट लगाई जा रही है। अगली पोस्ट के रूप में मैं कुमार विकल को संबोधित अपनी एक कविता ब्लॉग पर लगाऊंगा, जो २ साल पहले "इरावती" में प्रकाशित हुई थी और कुछ दोस्तों को अब भी उसकी याद है। )
kumar विकल को पहली बार पढ़ा। वेणुगोपाल के बारे में भी पहली बार जाना। फिर उनकी कविता कबाड़खाना पर पढ़ीं। अच्छी लगीं। दोनो कवियों को श्रद्धाजंलि !
ReplyDeleteयह कविता पहले भी पढी थी फिर पढी और फिर अच्छी लगी। बिल्कुल निजी सी लगती कविता जब धूप की पक्षधरता की बात करती है तो आम जन की हो जाती है। आपकी कविता का इंतजार रहेगा।
ReplyDeletegian ji ka ye photo save kar raha hoon......kavit lajawab hai.
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