रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मिरे पिन्दारे - मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्मो - रहे - दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किसको बतायेंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफ़ा है तो ज़माने के लिए आ
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते - गिरिया से भी महरूम
ऐ राहते -जां मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिले - ख़ुशफ़हम को तुझसे हैं उमीदें
यह आखिरी शम'एं भी बुझाने के लिए आ
" its a great loss in litreray world which can never be fulfilled " ek or gazal अहमद फ़राज़ jee kee
ReplyDeleteजो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया।
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया।
हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया
जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया।
जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
इक इक नक़्श तेरा याद आया।
ये मोहब्बत भी है क्या रोग 'फ़राज़'
जिसको भूले वो सदा याद आया।
Regards
धन्यवाद सीमा जी इस रचना के लिए और आपकी टिप्पणी के लिए भी!
ReplyDeleteशायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
ReplyDeleteशिरीष जी शायद अहमद फ़राज़ साहेब जैसे महान शायर को उनकी यह ग़ज़ल ही हम सबकी श्रद्धांजलि है.
ReplyDeleteफ़राज़
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