Wednesday, July 23, 2008

बनारस से निकला हुआ आदमी .... यात्रा वृत्तान्त

दोस्तों ये लम्बी कविता पहल ८३ में छप कर चर्चित या विवादित रही(हिन्दी में दोनों का अर्थ एक ही है शायद)। मैं पहली बार अपने ब्लॉग पर कोई आवाज़ चिपका रहा हूँ इसलिए किसी बड़े कवि की कविता इस्तेमाल न करते हुए ख़ुद पर इस प्रयोग को आजमा रहा हूँ ! मेरा स्वर बहुत अटपटा अजीब सा सुनाई देता है , बाक़ी आप बताइए कि कैसा लगा ?
अवधि : १६ मिनट २४ सेकेण्ड



9 comments:

  1. वाह, शिरीष भाई..बहुत लम्बी होने के बाद भी लगातार बाँधे रही..बनारस में टहलाती रही..बनारस की सुबह..लंका का चौक..घाट..कुरकुरी जलेबी..पानवाला मुछाड़ी..सब याद आता रहा..यहाँ तक कि बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस भी जीवंत हो उठी स्मृतियों में. कहन बहुत प्रभावी लगा. आप ने तो ऐसा लिख दिया था कि हम समझे न जाने कितना खराब पढ़ा होगा..लेकिन बात उल्टी ही निकली..आनन्द आया.

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  2. आपने इस पहले प्रयास की इतनी सराहना की! धन्यवाद समीर जी !

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  3. sunder paath hai!
    kavita panne par bhi prabhavit karti thi. shayad is par mene pratikriya di thi. paath zyada vichlit karnewali hai, aur tumhara sthayi bhav bhi.....
    pahar 15, bhijva rahe hain kya ?
    shekhar paathak ji ka sampark denge? pahar ki kavita ka kya bana?

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  4. बढ़िया है लाला! पॉडकास्टर बनने की बधाई!

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  5. वो कबाड़ी लोग क्या कैवे हैं-
    बोफ़्फ़ाईन!!!!

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  6. वाह - एक शहर में खींचे समय, साधन संस्कृति, विचार - जिए और भूले विद्रूप और उपहास, चिलकती किरणें भी - [ तुम्हारी आवाज़ का गहरापन अटपटा तो बिल्कुल नहीं है ] - manish

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  7. मनीष भाई आप बहुत दिनों बाद दिखे ! कहां रहे इतने दिन?

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  8. sachmuch bahut sundar kavita hai aur usse sunder tumari dheer ghambeer awaj maano kanhi duur se koi rahasmay sawar me gunguna utha ho.sach he Banaras acho acho ko phkeer bana deta he.

    gita sharma.

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  9. “वाराणसी इतिहास से भी अधिक प्राचीन है, परंपरा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है और मिथकों से कहीं अधिक प्राचीन हैऔर यदि तीनों (इतिहास, परंपरा व मिथक) को एक साथ रखा जाये तो यह उनसे दोगुनी प्राचीन है।“- मार्क ट्वेन

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