
2४ अगस्त १९७१ को इटावा में जन्मे पंकज नई पीढी के प्रतिष्ठित आलोचक और कवि हैं - और भरपूर हैं ! उन्होंने इन दो लेखकीय रूपों को एक ही व्यक्तित्व में सम्भव करने का चमत्कार कर दिखाया है। आइये मैं पढ़वाता हूँ उनकी एक विलक्षण कविता -
" हिंदी "
डिप्टी साहब आए
सबकी हाजिरी की जांच की
केवल रजनीकांत नहीं थे
कोई बता सकता है -
क्यों नहीं आए रजनीकांत ?
रजनी के जिगरी दोस्त हैं भूरा -
रजिस्टर के मुताबिक अनंतराम -
वही बता सकते हैं , साहब !
भूरा कुछ सहमते - से बोले :
रजनीकांत दिक़ हैं
डिप्टी साहब ने कहा :
क्या कहते हो ?
साहब , उई उछरौ - बूड़ौ हैं
इसका क्या मतलब है ?
भूरा ने स्पष्ट किया :
उनका जिव नागा है
डिप्टी साहब कुछ नहीं समझ पाये
भूरा ने फ़िर कोशिश की :
रजनी का चोला
कहे में नहीं है
इस पर साहब झुंझला गए :
यह कौन - सी भाषा है ?
एक बुजुर्ग मुलाजिम ने कहा :
हिंदी है हुज़ूर
इससे निहुरकर मिलना चाहिए !
***
***
हिंदी है हुज़ूर
ReplyDeleteइससे निहुरकर मिलना चाहिए !
... बढ़िया है. पंकज की कुछेक प्रेम कविताएं भी लगाई जानी चाहिए. क्या कहते हो लल्ला!
badhiya hai lekin himdi k pathak bahar bi hain bhayiye ham jaise lakhon log ...blog par ek tutoril bi rakhvayiye n !
ReplyDeleteआप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
ReplyDelete~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
hhhhhaaaaa ...लाजवाब है...
ReplyDeleteसुंदर. पंकज जी की वह कविता जो उन्होंने उसने कहा था पर लिखी है, वह भी लगाते, मुझे बेहद पसंद है |
ReplyDeleteबहुत पहले इस कविता को पढ़ा था.एक बार फिर पढ़ना अच्छा लगा...
ReplyDelete