Sunday, June 29, 2008

शहरयार

१९३६ में जन्मे शहरयार उर्दू के विख्यात शायर हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता के नाम से उनका एक संकलन भी है , जिस पर उन्हें १९८७ का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
ख़्वाब का दर बंद है
मेरे लिए रात ने
आज फ़राहम किया
एक नया मर्हला
नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया
कासा मेरी आँख का
और कहा कान में
मैंने हर एक जुर्म से
तुमको बरी कर दिया
मैंने सदा के लिए
तुमको रिहा कर दिया
जाओ जिधर चाहो तुम
जागो कि सो जाओ तुम
ख़्वाब का दर बंद है

फ़राहम - एकत्रित करके देना , मर्हला - पड़ाव , कासा - कटोरा

4 comments:

  1. वाह ! बहुत उम्दा है साहब. बहुत बढ़िया. शुक्रिया पढ़वाने का.

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  2. Shirish Saahab,
    Khuub, achchhi nazm hai. ummiid hai silsilaa jaarii rahegaa.

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  3. बहुत आभार शहरयार साहब को पढ़वाने का.

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  4. शहरयार साहब को मैंने मुजफ़्फ़र अली की फ़िल्म 'उम्रराव जान' से पहचाना था.उनकी कविता से परिचय बाद में हुआ.
    बहुत अच्छी कविता .

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