दोस्तों ये वो पहली पंक्तियाँ हैं, जिन्हें मैंने १७ की उम्र में लिखा और जिनमें कविता जैसा कुछ लगा। ये पंक्तियाँ उस समय की मेरी सबसे पक्की दोस्त सीमा को संबोधित थीं और मेरी ये एक छोटी सी बात मानने के बाद वही अब मेरी पत्नी भी है ...... तो इस तरह कविता उतनी बड़ी या महत्वपूर्ण नहीं है , जितनी ये अंतर्कथा !
कहन
मैं
कुछ कहता हूँ
तुम बैठो नदी किनारे
जैसे बैठे हैं
पत्थर
मैं बहता हूँ ......
***
कहन
मैं
कुछ कहता हूँ
तुम बैठो नदी किनारे
जैसे बैठे हैं
पत्थर
मैं बहता हूँ ......
***
बेहद पसंद आई साहब .....कहते रहिये ...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसफल रही कविता, बधाई.
अद्भुत कहन।
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