शिरीष भैया. लाजवाब कविता. बनारस वाली कविता के बाद यह कविता बहुत पसंद आयी. आपकी और रचनायें पढने को कैसे मिलेंगी? याद आ रही है वो मुलाकात जब हम लोग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की कैंटीन के पास फोटो खिंचाये थे? बहुत दिनों से आपसे बात करने का मन था. जब आपका ब्लाग देखा तो अद्भुत लगा. आप कैसे हैं? हो सके तो मेल करियेगा.
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बहुत सही कहा है भाई. ग़रीबों के पास सिर्फ़ हक़ होता है .... चीज़ें नहीं. सौ फी सदी सही. ख़्वाब देखने का भी सिर्फ़ हक़, ताबीर का क्या है .... वाह !
ReplyDeleteबिल्कुल सही-बहुत खूब!!
ReplyDeleteखूब
ReplyDeleteवाह!!! अच्छी रचना और अब भी सामयिक
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
शिरीष भैया. लाजवाब कविता. बनारस वाली कविता के बाद यह कविता बहुत पसंद आयी. आपकी और रचनायें पढने को कैसे मिलेंगी? याद आ रही है वो मुलाकात जब हम लोग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की कैंटीन के पास फोटो खिंचाये थे?
ReplyDeleteबहुत दिनों से आपसे बात करने का मन था. जब आपका ब्लाग देखा तो अद्भुत लगा. आप कैसे हैं?
हो सके तो मेल करियेगा.
प्रिय अनिल बहुत अच्छा लगा तुम्हारी प्रतिक्रिया पाकर, मेल भी करूंगा !
ReplyDeleteअच्छी कविता। सच्ची कविता।
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