Friday, May 9, 2008

शोकसभा में

आप सभी को मेरी पुरानी कवितायेँ पसंद आ रही हैं ! इसलिए १९९४ की ये एक और कविता .........

शोकसभा में

यह समय
घनीभूत पीड़ा का है
और झुके हुए सिर
इसकी
गवाही दे रहे हैं

तूफान से पहले की नहीं
तूफान के बाद की शांति है ये

अवसाद के इस क्षण में
शोक मुझको भी है

शोक
उसका नहीं उतना
जो खो गया

शोक उसका
जो खो जायेगा एक दिन
यूं ही सिर झुकाये ...

2 comments:

  1. क्या बात है, बहुत खूब!!


    -----------------------------------
    आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
    एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
    यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
    शुभकामनाऐं.
    समीर लाल
    (उड़न तश्तरी)

    ReplyDelete

यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्‍य अवगत करायें !

जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्‍यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्‍पणी के स्‍थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्‍तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्‍पणी के लिए सभी विकल्‍प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्‍थान अवश्‍य अंकित कर दें।

आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails