उम्र
जब तुम बच्ची थीं
तो
मैं तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता था
अब तुम रोती हो
तो
देखता हूँ मैं !
***
एक सार्थक कविता अपने पाठक के लिए कितना स्पेस छोड़ती है , इसकी एक बानगी उस्ताद कवि रघुवीर सहाय की इस कविता में देखी जा सकती है ! राजकमल से प्रकाशित ' लोग भूल गए हैं ' से साभार !
जब तुम बच्ची थीं
तो
मैं तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता था
अब तुम रोती हो
तो
देखता हूँ मैं !
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एक सार्थक कविता अपने पाठक के लिए कितना स्पेस छोड़ती है , इसकी एक बानगी उस्ताद कवि रघुवीर सहाय की इस कविता में देखी जा सकती है ! राजकमल से प्रकाशित ' लोग भूल गए हैं ' से साभार !
सच्ची!
ReplyDeleteरघुवीर सहाय की इस कविता को पेश करने के लिए आभार.
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