ये कवितायेँ भीं वाया वीरेन डंगवाल .......
रूबाईयात
१
जो दुनिया तुमने देखी रूमी, वो असल न थी, न कोई छाया वगैरह
यह सीमाहीन है और अनंत, इसका चितेरा नहीं है कोई अल्लाह वगैरह
और सबसे अच्छी रूबाई जो तुम्हारी धधकती देह ने हमारे लिए छोड़ी
वो तो हरगिज़ नहीं जो कहती है - सारी आकृतियाँ है परछाईयाँ वगैरह
२
न चूम सकूं न प्यार कर सकूं तुम्हारी तस्वीर को
पर मेरे उस शहर में तुम रहती हो रक्त मांस समेत
और तुम्हारा सुर्ख शहद वो
जो निषिद्ध मुझे
तुम्हारी वो बड़ी बड़ी आंखें सचमुच हैं
और बेताब भंवर जैसा तुम्हारा समर्पण
तुम्हारा गोरापन
मैं छू तक नहीं सकता !
Sunday, October 7, 2007
2 comments:
यहां तक आए हैं तो कृपया इस पृष्ठ पर अपनी राय से अवश्य अवगत करायें !
जो जी को लगती हो कहें, बस भाषा के न्यूनतम आदर्श का ख़याल रखें। अनुनाद की बेहतरी के लिए सुझाव भी दें और कुछ ग़लत लग रहा हो तो टिप्पणी के स्थान को शिकायत-पेटिका के रूप में इस्तेमाल करने से कभी न हिचकें। हमने टिप्पणी के लिए सभी विकल्प खुले रखे हैं, कोई एकाउंट न होने की स्थिति में अनाम में नीचे अपना नाम और स्थान अवश्य अंकित कर दें।
आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा ही अनुनाद को प्रेरित करती हैं, हम उनके लिए आभारी रहेगे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इतना सहज है कि अनुवाद तो लगता ही नहीं,,,,,यह सब तो पहल के क से है या कहीं और से उत्स भी बताओ...
ReplyDeletemere paas kuchh hain jo baad mein pahal me chaape....
ReplyDelete