अनुनाद

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येहूदा आमिखाई

आंखों की उदासी और एक सफ़र की तफसील एक अँधेरी याद है जिस पर चीनी के बुरे की तरह बिखरा हुआ है खेलते हुए बच्चों

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अंकुर मिश्र

ये स्मृति है एक अंकुर की जिसे बड़ा पेड बनना था लेकिन अब उसके अंकुराने के कुछ प्रमाण ही शेष हैं। उसके नाम से मुझे,

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हंस मानूस इंजेंत्सबरजर

खुशीवह नहीं चाहतीकि मैं उसके बारे में कुछ बोलूंउसे कागज पर नहीं उतारा जा सकेगाऔर न हीउसके बारे में कोई भविष्यवाणी ही की जा सकती

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कू सेंग

अब बच्चा अब बच्चाकुछ देख रहा हैकुछ सुन रहा है कुछ सोच रहा है क्या वह देख रहा हैउस तरह की चीज़ों को जैसी देखी

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ईरानी कविता – फरूग फरूखजाद

ईश्वर से मुखामुखी मेरी चमकती आंखों से दूसरी पर भाग जाने कि आतुरता छीन कर उन्हें सिखालाओ पर्दा करना उन चमकीली आंखों से हे ईश्वरहे

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टामस ट्रांसट्रोमर

स्मृतियां मुझ पर निगाह रखती हैंजून की एक सुबह यह बहुत जल्दी है जागने के लिए और दुबारा सो जाने के बहुत देर हो चुकी

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येहूदा आमीखाई

प्रेम की स्मृतियाँ १ – छवि हम कल्पना नहीं कर सकते कि कैसे हम जियेंगे एक दूसरे के बिना ऐसा हमने कहा और तब से

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येहूदा आमीखाई

समुद्र तट पर निशाँ जो रेत पर मिलते थे मिट गएउन्हें बनाने वाले भी मिट गए अपने न होने की हवा में कम ज़्यादा बन

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नाज़िम हिकमत की कविता

इस बार वाया मंगलेश डबराल स्त्रेस्नाय चौराहा स्त्रेस्नाय चौराहे का गिरिजाघर बजाता है चार का गजरहालांकि चौराहा और गिरिजाघर बहुत पहले उजड़ गए हैं और

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